~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ मृत्यु-कामना ~~~~~~~~~~~~~~~~
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ कविता ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ ( Death-Wish) ~~~~~~~~~~~~~~~~
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जैसे,
आदमी,
एक लंबे समय तक जीते रहने की इच्छा रखते हुए ,
-जीते रहने के बाद,
ऊब जाता है,
और चाहने लगता है,
मर जाना,
-किसी दिन,
किसी दिन,
- मर जाने की इच्छा करने लगता है,
दूसरी तमाम इच्छाओं की तरह,
उसकी यह इच्छा भी ,
या तो पूरी हो जाती है,
या बस कमजोरी या ताकत के साथ जीती रहती है ।
लेकिन तब हादसों का एक दौर शुरू होता है,
जब आदमी,
न तो जी रहा होता है,
न मर ही रहा होता है,
एक 'एनिमेटेड-कन्टीन्यूटी' में उम्र गुजारता हुआ ।
और यह दौर तब तक जारी रहता है,
जब तक कि वह 'इस' या 'उस' पार नहीं पहुँच जाता,
'एनिमेटेड-सस्पेंशन' से छूटकर ।
इस बीच उसे भ्रम होता रहता है कि वह ज़िंदा है,
-और कभी-कभी,
यह भी,
कि वह वाकई 'मर' चुका है ।
लेकिन कोई बिरला ऐसा भी तो होता होगा,
कि मृत्यु से पहले ही,
उसकी यह इच्छा दम तोड़ चुकी होती है,
-घूमता रहता है वह,
आकाश में,
किसी बादल सा,
कभी गरज़ता हुआ,
कभी बरसता हुआ,
कभी टूटता हुआ या जुड़ता हुआ,
-दूसरों से,
कभी सूरज को ढँकता हुआ,
कभी चन्दा को चूमता हुआ !
सब तरफ़ होकर भी,
सबसे जुदा !
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जीवन और mritu के बीच के ehsaas को jeeti achhe रचना है .......
ReplyDeleteत्रिशंकु की तरह लटकता रहता है वह इच्छाओं के आसमान मे ।
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