May 19, 2025

Transit of Planets.

पृथ्वीधराचार्य

वर्ष 1970 में मैंने देवास के के पी कॉलेज में बी.एस-सी. प्रथम वर्ष में प्रवेश लिया। बाद में मुझे यह पता चला कि यह वही "पृथ्वीधराचार्य" हैं जो कि इन्दौर से प्रकाशित होनेवाले "नई दुनिया" नामक अखबार में दैनिक भविष्य का कॉलम लिखते हैं। मुझे नहीं लगता था कि क्या एक ही साथ बारह राशियों के लोगों के भविष्य के बारे में जो कुछ लिखा जाता है, उसे कितना सच माना जाए। बस कौतूहलवश कभी कभी देख लेता था। 1973 तक वहाँ रहने के बाद मैं उज्जैन आ गया जहाँ बी एस-सी अंतिम वर्ष की परीक्षा दी। उसके बाद नौकरी की तलाश करने लगा जिसका कोई मतलब नहीं था। फिर भी ज्योतिष शास्त्र के बारे में मेरा कौतूहल बना रहा। बी एस-सी के अंतिम वर्ष में मुझे विक्रम विश्वविद्यालय के माधव विज्ञान महाविद्यालय पढ़ते हुए विश्वविद्यालय के जीवाजीराव पुस्तकालय से जुड़ने का सौभाग्य मिला जहाँ से मुझे दो पुस्तकें मिल सकती थीं। उन दिनों कोई विशेष रोक टोक नहीं थी, और मैं वहाँ से बहुत सी वे मनचाही पुस्तकें भी ले लिया करता था जिनका मेरे कॉलेज के मेरे पाठ्यक्रम से कोई संबंध नहीं होता था। पुस्तकालय में वाचनालय भी था जहाँ कुछ पत्र पत्रिकाएँ भी पढ़ी जा सकती थीं। ऐसी ही एक पत्रिका थी -

Astrological Magazine  या  A. M.,

जो बैंगलोर से प्रकाशित होती थी और जिसके संपादक और प्रकाशक थे -

Bangalore Venkata Ramana -

(B V Ramana) नामक व्यक्ति।

देवास जैसी छोटी जगह की तुलना में उज्जैन एक काफी बड़ा शहर है। एक सिरे पर मैं वहाँ इंजीनियरिंग कॉलेज के परिसर में रहता था, तो दूसरे सिरे पर है छत्री चौक या गोपाल मन्दिर। गोपाल मन्दिर के एक ओर पटनी बाजार से होकर महाकालेश्वर मन्दिर जाने का मार्ग है, तो दूसरी तरफ ढाबा रोड, कालिदास मॉन्टेसरी, कैलाश टाकीज़ आदि। उस रोड पर एक दुकान धार्मिक किताबों की भी थी जहाँ से मैंने स्वामी विवेकानन्द के पुस्तक "राजयोग" खरीदी थी। तब शायद उसका मूल्य ₹2/- था।

बाद में देवास गेट की दुकान से नारायणदत्त श्रीमाली की कुछ पुस्तकें "दशफल दर्पण", "भारतीय अंक शास्त्र" और "ज्योतिष योग" आदि खरीदी थीं।

इस सब अध्ययन के बाद यह प्रश्न मेरे मन में आया कि इ सबका सार क्या है, उसे कैसे सीखा और प्रयोग में लाया जाए?

A. M. से मुझे बहुत सहायता मिली और यह समझ में आया कि पहले तो विंशोत्तरी, अष्टोत्तरी और योगिनी इन तीन मुख्य दशाओं का निर्धारण करना चाहिए, बाद में जातक की जन्म पत्रिका में दिखलाई देनेवाले विभिन्न महत्वपूर्ण ज्योतिषीय योगों को देखना होगा और इसके बाद उन योगों के फलित होने के समय का निर्धारण, उन सभी ग्रहों की महादशा, अन्तर्दशा और प्रत्यन्तरदशा के अनुसार तय करना होगा। इसके अतिरिक्त प्रश्न कुंडली का अध्ययन भी सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। प्रश्न कुंडली के अध्ययन से भी बहुत कुछ सीखा और जाना जा सकता है। उन्हीं दिनों मालीपुरा स्थित पुस्तकों की एक दुकान से मैंने "वर्षफल दर्पण" नामक बहुत अच्छी किताब खरीदी थी, जिसमें "मुन्था" की अवधारणा का उल्लेख पहली बार मुझे दिखलाई पड़ा। बहुत बाद में मुझे पता चला कि यह अवधारणा अरबी / फारसी ज्योतिष-शास्त्र की देन है, क्योंकि चन्द्र के 12 महीनों के 12 राशियों के भ्रमण पर आधारित अरबी / फारसी कैलेन्डर में उस "अधिक मास" की गणना उस तरह से नहीं की जाती, जैसी कि वैदिक भारतीय पञ्चाङ्ग में की जाती है। और इसलिए "माह" संस्कृत "मास" का अपभ्रंश है, जो चन्द्रमा का ही द्योतक है। शायद इसी आधार पर "मुन्था" (अंग्रेजी - month) की परिकल्पना या अवधारणा प्रस्तुत की गई, और तदनुसार इस आधार पर "वर्षफल" को समायोजित किया गया। यह सब मेरा व्यक्तिगत विचार है, हो सकता है कि यह सही हो या न भी हो। यह सही है भी या नहीं, इस बारे में मेरा कोई दावा नहीं है।

व्यक्ति के जीवन के बारे में इन दो या तीन बिन्दुओं के आधार पर कोई अनुमान किया जा सकता है, विभिन्न घटनाओं के समय का भी, वहीं इससे पहले की पोस्ट में जैसा मैंने इंगित किया, विभिन्न ग्रहों के राशिचक्र में होने वाले भ्रमण के समय-अन्तराल के आधार पर, और उनके राशि परिवर्तन के आधार पर भी इन घटनाओं का महत्व तय किया जा सकता है। सूर्य, बुध और शुक्र तीव्रगामी ग्रह हैं जो कि पृथ्वी की कक्षा के भीतर रहते हुए लगभग एक माह के समय में एक से दूसरी राशि में चले जाते हैं, चन्द्रमा लगभग 27 दिनों में पूरे राशिचक्र का परिभ्रमण कर लेता है और नक्षत्रों में उसके अपने चलने में व्यतीत किए गए समय के अनुसार चान्द्र मास की तीस तिथियाँ, सौर मास की तुलना में वृद्धि या ह्रास को प्राप्त होती हैं। दूसरी ओर, पृथ्वी की कक्षा से बाहर के ग्रह जैसे मंगल, बृहस्पति और शनि जो पृथ्वी की कक्षा से बाहर रहकर राशिचक्र में भ्रमण करते हैं। स्पष्ट है कि जो ग्रह सूर्य से जितना कम या अधिक दूर होगा उसके द्वारा राशिचक्र में परिभ्रमण करने के लिए लगनेवाला समय उसी अनुपात में कम या अधिक होगा। बृहस्पति लगभग बारह वर्षों में और शनि तीस वर्षों में राशिचक्र का एक पूरा परिभ्रमण करते हैं। और हमारे सौर मण्डल से सर्वाधिक दूर के दो छायाग्रह राहु (तथा केतु) 18 वर्ष के समय में यह पूरा परिभ्रमण करते हैं। और इतना ही नहीं वे सदैव वक्री रहते हैं अर्थात् विलोम गति से चलते हैं जिसे अंग्रेजी में Retrograde  कहते हैं। और इसीलिए इन सभी ग्रहों के प्रभाव भी भिन्न भिन्न और विलक्षण तथा विचित्र होते हैं। वैश्विक प्रभाव एक अलग तरह के, स्थानों की और समुदायों तथा मनुष्य विशेष के अनुसार भी भिन्न भिन्न होते हैं। यहाँ तक कि किसी स्थान विशेष के मौसम के बारे में भी इस अध्ययन का उपयोग हो सकता है।

(Meteorite / Astrological Meteorology)

इसी आधार पर मैंने अपना अध्ययन किया और अनुभव किया कि ज्योतिष शास्त्र घटनाओं का पूर्वानुमान करने और भविष्य का आकलन करने के लिए एक अच्छा और उपयोगी साधन (instrument) अवश्य हो सकता है, किन्तु इसके लिए लगन से उचित और पर्याप्त श्रम किया जाना भी अपेक्षित है। धैर्यपूर्वक श्रम करने पर भविष्य के बारे में अवश्य बहुत कुछ सुनिश्चित कहा और जाना जा सकता है।

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