नैनन नहीं सनेह,
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भौतिकता और बुद्धिवाद आज की वैश्विक संस्कृति के दो ध्रुव हैं जिनके चुम्बकीय क्षेत्र में लौह-कण इधर उधर खिंचते रहते हैं। और यही है आज की विश्व राजनीति का सार। सतही भावुकता से मुग्ध, महत्वाकांक्षा से अभिभूत, स्वार्थबुद्धि से ग्रस्त मनुष्य इस मरुस्थल में जल की आशा से क्षितिज पर दिखलाई पड़ती मृग-मरीचिका की दिशा में सर्वत्र दौड़ रहे हैं। यही उनकी नियति और उपलब्धि है।
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