July 01, 2019

कविता / निर्वेद

कुछ नहीं मन !
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कुछ नहीं करना है,
कुछ नहीं कहना है,
कुछ नहीं सुनना है,
कुछ नहीं होना है !
फिर भी कुछ करना है,
फिर भी कुछ होना है,
फिर भी कुछ सुनना है,
बस वही, जो होना है !
कुछ करने का मन नहीं,
कुछ कहने का मन नहीं,
कुछ सुनने का मन नहीं,
फिर भी सब करना है !
वह जो होता है बिन चाहे,
और नहीं चाहकर भी जो,
उसी होने या न होने में,
मन को निर्लिप्त पड़े रहना है।
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कविता / निर्वेद 
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(गीता अध्याय 2,
यदा ते मोहकलिलं बुद्धिर्व्यतितरिष्यति।
तदा गन्तासि निर्वेदं श्रोतव्यस्य श्रुतस्य च।।52
 पढ़ते हुए ... )
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