विचार-विधान / विचार-प्रवाह
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अभिनेत्री पायल रोहतगी अपने विडिओ में 'Thought-Process' शब्द का प्रयोग अक्सर करती हैं।
ज़ाहिर है कि इस दौरान 'Thought-Process' का सहारा और इस्तेमाल तब भी ज़रूरी होता है, जब कोई बिना इस शब्द को बोले भी अपनी बात कहता है ।
जिन विषयों पर वे अपने विचार व्यक्त करती हैं उनमें से अधिकाँश में मेरी दिलचस्पी नहीं है क्योंकि फिल्मों या फ़िल्म-टीवी आदि से मेरा संबंध बरसों से टूट चुका है। फ़िल्म-टीवी आदि जिन मुद्दों को अपनी गतिविधियों में महत्व देते हैं उनमें मेरी दिलचस्पी उतनी ही होती है जितनी सुबह के अख़बार में हो सकती है।
अख़बार में जैसे केवल हेड-लाइन्स, 'उठावना' / शोक-समाचार और editorials ही देखता हूँ, और लगभग सभी विज्ञापनों को नज़र-अंदाज़ कर देता हूँ मेरा वैसा ही व्यवहार नेट पर देखे जानेवाले न्यूज़-चैनल्स के साथ भी होता है। मेरी रुचि ब्लॉग लिखने / पढ़ने में, debates देखने-सुनने में अधिक है। ऐसा करना शायद मेरे लिए मेरे मनोरंजन का ज़रिया भी हो सकता है। यद्यपि स्वयं मुझे किसी debate में भाग लेना पसंद नहीं।
हर कोई वैसे तो केवल अपनी रुचि, ज़रूरत और काम की वेब-साइट्स गम्भीरतापूर्वक देखता है लेकिन कभी-कभी केवल कौतूहलवश भी ऐसी साइट्स चेक कर लेता है जहाँ उसे सीखने या जानने के लिए कुछ नया मिलने की संभावना दिखाई दे जाती है। इसीलिए कभी-कभी कुछ अलग भी देख लेता हूँ।
यही विचार-प्रक्रिया (Thought-Process) प्रायः आदतन हर किसी की होती है।
लेकिन इससे अधिक रोचक यह है कि हर किसी की विचार-प्रक्रिया (Thought-Process) किन्हीं सुनिश्चित विश्वासों, मान्यताओं, प्रयोजनों और आग्रहों की लीक से बँधे होते है। वे विश्वास, मान्यताएँ, आग्रह जिन पर वह और समाज भी 'धर्म' शब्द की मुहर लगाता है, 'धर्म' शब्द का आवरण चढ़ाता या लेबल लगाता है।
यह भी कुछ कम आश्चर्यजनक नहीं है।
और इसी के चलते जहाँ लब्धप्रतिष्ठ या लुब्ध-प्रतिष्ठा बुद्धिजीवी / राजनीतिक पत्रकार अनेक विषयों पर न केवल भिन्न-भिन्न विषयों पर भिन्न-भिन्न विचार-विधानों, विचार-प्रवाहों और विचार-प्रक्रियाओं की एक-दूसरे से बहुत अलग अलग नदियों में नौकायन (navigation) करते हैं, वहीं उनके व्यक्तित्व की जटिलता, विषमता, रूढ़ता और दुरूहता स्वयं उन्हें ही, इस प्रकार दूसरों से अधिक भ्रमित किए रखती है ।
विचार-विधान (thought-structure) अपनी अपनी जानकारी, भाषा, और तर्कबुद्धि की मर्यादा से तय होता है, तो विचार-प्रवाह की दिशा अपने हितों, आशंकाओं, आकांक्षाओं और आशा-निराशाओं से तय होती है।
विचार-प्रवाह की नदी इन्हीं दो तटों के बीच बहती है जिसकी धारा में अनेक द्वीप ही नहीं अनेक दलदल या भँवर भी होते हैं। और एक ही नदी में परस्पर विरोधी, समानान्तर या विसंगत अनेक प्रवाह भी होते हैं।
जब तक दूसरों से किसी विषय पर विचारों का आदान-प्रदान होता रहता है तब तक वस्तुतः कोई संवाद घटित ही नहीं हो पाता। और हमें कभी ख़ुशी कभी ग़म वाली स्थिति का सामना करना पड़ता है। कभी तसल्ली या आशा-निराशा भी हाथ लगती है, कभी-कभी मन उचट या ऊब जाता है लेकिन नौकायन (navigation) का मोह हमें अपनी पकड़ से छोड़ता नहीं।
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अभिनेत्री पायल रोहतगी अपने विडिओ में 'Thought-Process' शब्द का प्रयोग अक्सर करती हैं।
ज़ाहिर है कि इस दौरान 'Thought-Process' का सहारा और इस्तेमाल तब भी ज़रूरी होता है, जब कोई बिना इस शब्द को बोले भी अपनी बात कहता है ।
जिन विषयों पर वे अपने विचार व्यक्त करती हैं उनमें से अधिकाँश में मेरी दिलचस्पी नहीं है क्योंकि फिल्मों या फ़िल्म-टीवी आदि से मेरा संबंध बरसों से टूट चुका है। फ़िल्म-टीवी आदि जिन मुद्दों को अपनी गतिविधियों में महत्व देते हैं उनमें मेरी दिलचस्पी उतनी ही होती है जितनी सुबह के अख़बार में हो सकती है।
अख़बार में जैसे केवल हेड-लाइन्स, 'उठावना' / शोक-समाचार और editorials ही देखता हूँ, और लगभग सभी विज्ञापनों को नज़र-अंदाज़ कर देता हूँ मेरा वैसा ही व्यवहार नेट पर देखे जानेवाले न्यूज़-चैनल्स के साथ भी होता है। मेरी रुचि ब्लॉग लिखने / पढ़ने में, debates देखने-सुनने में अधिक है। ऐसा करना शायद मेरे लिए मेरे मनोरंजन का ज़रिया भी हो सकता है। यद्यपि स्वयं मुझे किसी debate में भाग लेना पसंद नहीं।
हर कोई वैसे तो केवल अपनी रुचि, ज़रूरत और काम की वेब-साइट्स गम्भीरतापूर्वक देखता है लेकिन कभी-कभी केवल कौतूहलवश भी ऐसी साइट्स चेक कर लेता है जहाँ उसे सीखने या जानने के लिए कुछ नया मिलने की संभावना दिखाई दे जाती है। इसीलिए कभी-कभी कुछ अलग भी देख लेता हूँ।
यही विचार-प्रक्रिया (Thought-Process) प्रायः आदतन हर किसी की होती है।
लेकिन इससे अधिक रोचक यह है कि हर किसी की विचार-प्रक्रिया (Thought-Process) किन्हीं सुनिश्चित विश्वासों, मान्यताओं, प्रयोजनों और आग्रहों की लीक से बँधे होते है। वे विश्वास, मान्यताएँ, आग्रह जिन पर वह और समाज भी 'धर्म' शब्द की मुहर लगाता है, 'धर्म' शब्द का आवरण चढ़ाता या लेबल लगाता है।
यह भी कुछ कम आश्चर्यजनक नहीं है।
और इसी के चलते जहाँ लब्धप्रतिष्ठ या लुब्ध-प्रतिष्ठा बुद्धिजीवी / राजनीतिक पत्रकार अनेक विषयों पर न केवल भिन्न-भिन्न विषयों पर भिन्न-भिन्न विचार-विधानों, विचार-प्रवाहों और विचार-प्रक्रियाओं की एक-दूसरे से बहुत अलग अलग नदियों में नौकायन (navigation) करते हैं, वहीं उनके व्यक्तित्व की जटिलता, विषमता, रूढ़ता और दुरूहता स्वयं उन्हें ही, इस प्रकार दूसरों से अधिक भ्रमित किए रखती है ।
विचार-विधान (thought-structure) अपनी अपनी जानकारी, भाषा, और तर्कबुद्धि की मर्यादा से तय होता है, तो विचार-प्रवाह की दिशा अपने हितों, आशंकाओं, आकांक्षाओं और आशा-निराशाओं से तय होती है।
विचार-प्रवाह की नदी इन्हीं दो तटों के बीच बहती है जिसकी धारा में अनेक द्वीप ही नहीं अनेक दलदल या भँवर भी होते हैं। और एक ही नदी में परस्पर विरोधी, समानान्तर या विसंगत अनेक प्रवाह भी होते हैं।
जब तक दूसरों से किसी विषय पर विचारों का आदान-प्रदान होता रहता है तब तक वस्तुतः कोई संवाद घटित ही नहीं हो पाता। और हमें कभी ख़ुशी कभी ग़म वाली स्थिति का सामना करना पड़ता है। कभी तसल्ली या आशा-निराशा भी हाथ लगती है, कभी-कभी मन उचट या ऊब जाता है लेकिन नौकायन (navigation) का मोह हमें अपनी पकड़ से छोड़ता नहीं।
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