June 04, 2019

शिक्षा की व्यवस्था और राजभाषा का प्रश्न

भाषा-शिक्षा और शिक्षा-भाषा
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आज ही सुबह भाषा की राजनीति से संबंधित एक पोस्ट इसी ब्लॉग में लिखा था।
अभी पाँच मिनट पहले,  श्री अय्यर जी द्वारा प्रस्तुत विचार सुने  , जिसे उन्होंने कुछ घंटों पहले व्यक्त किया था, तो मुझे यह देखकर आश्चर्य हुआ कि उनका दृष्टिकोण मेरे दृष्टिकोण से कितना अधिक समान है।
मैंने अपने पोस्ट में यही कहा था कि परस्पर विचार-विनिमय तथा शिक्षा के माध्यम के रूप में भाषा, - सब्ज़ी या दाल के समान है, जबकि विचार की विषय-वस्तु (matter / subject) मुख्य भोजन, - जैसे कि रोटी या चाँवल जैसा है।  इसलिए जब कोई भी व्यक्ति जितनी अधिक भाषाएँ सीखता और उनका इस्तेमाल करता है तो उसके मस्तिष्क का उतना ही अधिक बहु-आयामी विकास हो सकता है। इसलिए शिक्षा की भाषा एक या एकाधिक हों तो इसमें सभी का लाभ है।  और इसलिए भाषा की शिक्षा मुख्यतः ऐच्छिक विषय के रूप में दी जानी / ली जानी चाहिए।
मुझे खुशी हुई कि मेरी बात कहनेवाले और भी हैं, और इस तरीके से सोचने से हमें अनेक समस्याओं को बिलकुल नए सिरे से देखना संभव हो रहा है।
श्रेय भले ही किसी को भी मिले ऐसे विचारों से समाज और व्यवस्था में आमूल परिवर्तन लाया जा सकता है।
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प्रमुख बिंदु :
शिक्षा की व्यवस्था और राजभाषा का प्रश्न,
राष्ट्रभाषा,
अनेक भाषाएँ सीखने से रोज़गार की संभावनाएँ बढ़ती हैं। यह बेरोज़गारी कम करने के लिए भी सहायक है।
यह परस्पर सौहार्द्र और समरसता को भी बढ़ाता है।
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