June 20, 2019

'वर्णसाम्य' तथा 'अर्थसाम्य'

गंगा-जमनी तहज़ीब 
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हिज़्ब अरबी भाषा का शब्द है या नहीं मैं नहीं जानता, लेकिन ऑक्सफ़ोर्ड हिंदी-इंग्लिश-डिक्शनरी के अनुसार तहज़ीब शब्द फ़ारसी से हिंदी में आया है। महफ़िल अरबी भाषा का शब्द है। महफूज़, महज़ भी अरबी भाषा से हिंदी में आए हैं। अरबी से हफ़ीज़, हाफ़िज़, मुहाफ़िज़, महफूज़, हिफ़ाज़त कैसे बने हैं इसका अनुमान लगाया जा सकता है।  मुझे अरबी लिपि का ज्ञान नहीं है, उर्दू (लिपि) से भी मैं लगभग अनभिज्ञ हूँ। लेकिन अरबी भाषा का हिजरत (exodus) शब्द है, जो मूलतः अलगाव या पलायन के अर्थ में प्रयुक्त किया जाता है।  'हिजरी' सम्वत् का प्रारंभ इसी 'हिजरत' से हुआ था। इसी हिजरत से निष्पन्न 'मुहाजिर' उसके लिए प्रयुक्त होता है जो बाहर से आया है। हिंदी में प्रवासी का अर्थ है, जो कुछ तय समय के लिए कहीं आता-जाता रहता है। आप्रवासी का अर्थ है जो प्रवास करने के बाद बाहर कहीं स्थायी रूप से बस गया है।
संस्कृत में 'उर्द्' धातु (भ्वादिगण,  माने -- मानं परिणामं च एवं क्रीड़ायां) अर्थात् तुलना और संकेत करने,  तथा
खेलने / व्यवहार के अर्थ में प्रयुक्त होती है। 'उर्दू' के उद्भव के जो ऐतिहासिक कारण बतलाए जाते हैं वे केवल इस सरल से तथ्य पर पर्दा डालने के लिए प्रस्तुत किए जाते हैं। यह स्पष्ट है कि बाहर से आए अरबी, तुर्क, फ़ारसी, मंगोल, उज़बेक आक्रमणकारी अतिथियों से संपर्क-भाषा के रूप में जो भाषा अस्तित्व में आई उसे ही 'उर्दू' का नाम मिला।     
'मह' और 'पीलु' दोनों संस्कृत के शब्द हैं जिनसे अंग्रेज़ी और दूसरी यूरोपीय भाषाओं के अनेक शब्द बने हैं 'वर्णसाम्य' तथा 'अर्थसाम्य' के द्वारा जिनके संस्कृत से उद्भव की पुष्टि की जा सकती है। संस्कृत में मेघ, मघवा, मघवन् आदि इंद्र के लिए प्रयुक्त शब्द हैं। Mega, Metric, Meta, तथा Max इसी के सज्ञात / सज्ञाति cognate हैं, यह स्वीकार करना मुश्किल नहीं है। महफ़िल भी इसी प्रकार से बना शब्द है।  
'पीलु' से पीलुस्थान (वर्तमान फ़लस्तीन) और ग्रीक भाषा के शब्द 'phil' की उत्पत्ति हुई जो उपसर्ग (suffix) की तरह फिलोसॉफी / फ़लसफ़ा  और अनेक यूरोपीय भाषाओं में भी पाए जाते हैं।  Philosophy, Philology, Philanthropy, Philharmonic, Philanderer, King Philip, सभी से इस तथ्य की पुष्टि होती है।
हिजाब और मजहब दोनों शब्दों का अर्थ होता है आचरण करने का तरीका (विधि / विधान) जिसे पर्यायतः किन्तु सीमित अर्थ में शायद 'धर्म' कहा जा सकता है, किन्तु 'धर्म' के व्यापक वैदिक, सनातन-धर्म के अर्थ में यह उससे बहुत भिन्न हो सकता है।
तमाम मजहबों (religions) में टकराहट और परस्पर वैमनस्य इसीलिए हैं क्योंकि न तो मजहब और न religion धर्म के उपयुक्त पर्याय हो सकते हैं। धर्म-निरपेक्षता / Secularism इसीलिए एक भ्रामक शब्द है जिसे हर कोई अपने ढंग से परिभाषित करता है।
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गंगा को भगीरथ स्वर्ग से धरती पर लाये तो वह भगवान शंकर की जटाओं में रास्ता भूल गयी।
गंगा वास्तव में सतोगुणी देवता-तत्व है, जबकि यमुना सूर्यपुत्री है जिसका जन्म सूर्यपत्नी 'संज्ञा' से हुआ।
भगवान सूर्य से ही मृत्यु (के देवता यमराज) का जन्म हुआ।  तात्पर्य यह कि गंगा का आधिदैविक स्वरूप पुण्यप्रद है जबकि आधिभौतिक स्वरूप जल-तत्व है और उस रूप में वह यमुना जैसी ही एक नदी है, जिसका उद्गम हिमालय से होता है।
चूँकि यमराज तमोगुण-प्रधान हैं और यमुना रजोगुण-प्रधान, ये दोनों भाई-बहन क्रमशः तमोगुण तथा रजोगुण से प्रवृत्त हैं और इसी प्रकार इनके प्रभाव से दोनों ही धरती पर प्रजा को नियम से परिचालित करते हैं।
गंगा-जमनी तहज़ीब में इसलिए अनेक विरोधाभास और विडंबनाएँ होना आश्चर्य नहीं है।
'उर्दू' उसी तहज़ीब का असर है और यदि हम इसे देवनागरी में लिखने लगें तो इसकी शक्ति अनेक गुना बढ़ जाएगी और जैसे सभी नदियाँ बहते बहते स्वयं ही स्वयं को शुद्ध और स्वच्छ करती रहती हैं, भाषाएँ भी इस प्रकार अधिक समृद्ध और सामर्थ्यवान हो सकती हैं।
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