June 16, 2019

ईश्वर और ईशिता

पितृ-सत्ता / Male-Chauvinism 
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आज का गूगल-डूडल Father's Day को समर्पित है।
बुद्धिजीवी इस पर अथक बहस कर सकते हैं और उसे मनचाही दिशा में मोड़ सकते हैं कि भारत में कैसे पितृ-सत्तात्मक समाज में स्त्री को संपत्ति / गुलाम समझा जाता था :
पिता रक्षति कौमारे भर्ता रक्षति यौवने।
रक्षन्ति स्थविरे पुत्रा न स्त्री स्वातन्त्रमर्हति।।
(मनुस्मृति 9 :3)
इस बारे में यूरोप (और आज का अमेरिका) के, - चाहे वे पूँजीवादी / साम्यवादी / नास्तिक या ईसाई मत के विभिन्न सम्प्रदाय हों, प्रगतिशील होने की दुन्दुभी बजाते नहीं थकते।
लेकिन Father's Day के दिन का इतिहास उतना ही पुराना है जिस दिन 'ईश्वर' / God को महान और संसार का सर्वशक्तिमान परम पिता कहकर उसके 'एक' होने को परम सत्य स्वीकार किया गया।
इस प्रकार सांख्य-सिद्धान्त में जिसका उल्लेख तक करने से कपिल-मुनि बचते रहे, बेचारा वही 'पुरुष' 'एक' और 'पिता' होने तक सीमित होकर रह गया।
वेदों में उस परमेश्वर को 'ईशिता' अर्थात् स्वामित्व का अधिकार कहा गया है, जो ईश्वर का 'गुण' और उपाधि है।ऋग्वेद में उसे इसलिए उसके कार्य के अनुसार, 'एक' भी, अनेक भी, शून्य भी, अशून्य भी, व्यक्ति भी, स्त्री भी, पुरुष भी, यहाँ तक कि नपुंसक (लिङ्ग) भी, आनन्द एवं अनानन्द भी, विज्ञान तथा अविज्ञान दोनों, ब्रह्म व अब्रह्म, या ब्रह्मा तथा ब्रह्माणी (सरस्वती, सृष्टिकर्ता की वह विद्या जिसके माध्यम से वह सृष्टि करता है) भी, तथा समष्टि (ब्रह्म) भी कहा गया है। उससे ही प्रकृति-पुरुषात्मक जगत है।
[By the way here we can see a brief reference to Abraham / इब्राहीम, the core-elements of Western Religions]
जिस प्रकार शक्कर से मिठास को अलग नहीं किया जा सकता अर्थात् यदि मिठास है तो शक्कर भी होगी ही, तथा इसी प्रकार यदि शक्कर है तो मिठास भी होगी ही, वैसे ही 'ईश्वर' नामक उस परम सत्ता को 'ईशिता' से पृथक नहीं किया जा सकता। 
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ॐ सर्वे वै देवा देवीमुपतस्थुः कासि त्वं महादेवीति।।१।।  
साब्रवीत -- अहं ब्रह्मस्वरूपिणी। मत्तः प्रकृति-पुरुषात्मकं जगत्। शून्यं चाशून्यं च।।२।। 
अहमानन्दानानन्दौ। अहं विज्ञानाविज्ञाने। अहं ब्रह्माब्रह्मणी वेदितव्ये। अहं पञ्चभूतान्यपञ्चभूतानि।  अहमखिलं जगत्।।३।।
वेदोऽहमवेदोऽहं।  विद्याह्मविद्याहम्।  अजाहमनजाहम्। अधश्चोर्ध्वं च तिर्यक्चाहम्।।४।।
(ऋग्वेद १०/०८/१२५)
अहं रुद्रेभिभिर्वसुभिश्चरामि। अहमादित्यैरुत विश्वदेवैः। अहं मित्रावरुणावुभौ बिभर्मि । अहमिन्द्राग्नी अहमश्विनावुभौ।।५।।          
(देव्यथर्वशीर्षम्) 
क्या हमें Father's Day, Mother's Day, Women's Day जैसे दिन अलग से भी मनाना चाहिए?
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