कविता
दावे!
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कलम का दावा था,
’मैं लिखती हूँ’
कागज़ का दावा था,
’मेरे होने से’,
उँगलियाँ कहती थीं,
’हम लिखती हैं’,
हाथ कहता है,
’मैं लिखता हूँ’
दिल को मालूम नहीं,
लिखता है कौन,
और वो लिखता है,
बेबस,
बस होता है मौन!
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दावे!
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कलम का दावा था,
’मैं लिखती हूँ’
कागज़ का दावा था,
’मेरे होने से’,
उँगलियाँ कहती थीं,
’हम लिखती हैं’,
हाथ कहता है,
’मैं लिखता हूँ’
दिल को मालूम नहीं,
लिखता है कौन,
और वो लिखता है,
बेबस,
बस होता है मौन!
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