’अहोई-माहात्म्य’
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वसुन्धरा के आठ पुत्र,
अष्टपुत्रा सौभाग्यवती,
वसुन्धरा सौभाग्यवती,
अष्टवसुओं की जननी,
वसुन्धरा पृथ्वी, लक्ष्मी,
विष्णुपत्नी, जगज्जननी,
वसुन्धरा व्रतधारिणी,
नित्य व्रत-अवस्थिता,
अष्टवसु नित्य खेलते,
खेल-खेल जगत का,
नररूप लेकर नारायण,
नारीरूपा जो नारायणी,
करते करक-चतुर्थी-व्रत,
करते अष्टभवीय उत्सव,
अष्टवसु देते उल्लास,
समृद्धि वैभव आनंद ।
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वसुन्धरा के आठ पुत्र,
अष्टपुत्रा सौभाग्यवती,
वसुन्धरा सौभाग्यवती,
अष्टवसुओं की जननी,
वसुन्धरा पृथ्वी, लक्ष्मी,
विष्णुपत्नी, जगज्जननी,
वसुन्धरा व्रतधारिणी,
नित्य व्रत-अवस्थिता,
अष्टवसु नित्य खेलते,
खेल-खेल जगत का,
नररूप लेकर नारायण,
नारीरूपा जो नारायणी,
करते करक-चतुर्थी-व्रत,
करते अष्टभवीय उत्सव,
अष्टवसु देते उल्लास,
समृद्धि वैभव आनंद ।
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टिप्पणी : कुछ लोगों का विचार है कि यह सब ’कर्मकाण्ड’, ’कथा’ का आविष्कार ’पंडितों’ ने लोगों को बेवक़ूफ़ बनाने के लिए किया है, लेकिन इस पद्य के रचयिता को आज ही इस रचना (को रचने) का प्रकाश क्या इसलिए हुआ? उसका तो किसी कर्म-काण्ड से दूर-दूर तक का रिश्ता नहीं है! वह शास्त्र-विहित, शास्त्र-निषिद्ध, शास्त्र से निर्धारित नैमित्तिक अथवा ’काम्य’ किसी भी तरह के कर्म का न तो स्वयं ’अनुष्ठान’ करता है, न इसके लिए कभी किसी का ’पुरोहित’ हुआ है / होता है ।
यदि कुछ लोगों ने इसे ’व्यवसाय’ बना लिया हो, इससे बस यही सिद्ध होता है कि वे स्वार्थवश परंपरा और धर्म का केवल दुरुपयोग कर रहे हैं! तो यह आक्षेप केवल हिन्दू-धर्म पर ही क्यों उठाया जाए?
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