October 05, 2017

शरद की पूनम!

आज की कविता 
शरद की यह पूनम!
कल दोपहर से मीन का,
चंद्र, पूनम का चाँद हुआ,
आज मध्य-रात्रि तक ही,
रहेगा वह पूनम का,
शाम को तांबई टिकिया सा,
पूरब के भाल पर था,
वह लाल रक्तिम चंद्र उदास था,
एक साँवली झाईं थी उसके चेहरे पर!
ताम्रक, - तांबई, -स्वर्ण-रहित!,
और अब मिल रहा है,
जाकर कहीं स्वर्ण उसमें ।
जानता हूँ कि मध्य-रात्रि तक,
स्वर्ण पिघल कर,
शायद चाँदी सा बह निकलेगा,
टपकेगा बूँद-बूँद, अमृत बनकर,
शायद रात्रि का वह तमग़ा,
पूरी रात रहेगा नभ पर,
और मछलियाँ,
चंचल मीन-नेत्र से,
तकती रहेंगी उसे,
सुध-बुध खोकर !
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और यह पोस्ट होते-होते 'नोटिफिकेशन' आता है :
Baluchistan shrine bomb-blast : 12 killed.
शायद वह लाल रक्तिम चंद्र इसीलिए उदास था,
एक साँवली झाईं थी उसके चेहरे पर!
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