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.© Vinay Vaidya
एक पागल विचार,
मग्न था,
वह इतना मग्न था,
और बिलकुल नग्न था ।
और उसे खयाल तक न रहा,
कि उसे कोई देख रहा होगा !
एक पागल,
विचारमग्न था,
वह इतना मग्न था,
और बिलकुल नग्न था ।
और उसे खयाल तक न रहा,
कि उसे कोई देख रहा होगा !
फ़िर वह ’टब’ से निकलकर,
दौड़ता हुआ बाहर सड़क तक चला आया,
उत्तेजना से भरकर चिल्ला उठा,....
यूरेकाऽ, यूऽरेऽकाऽऽ ...!!
लोग हैरत से उसे देखने लगे ।
वह चौंका,
उसे अपनी स्थिति का भान हुआ,
और वह दौड़ता हुआ लौटकर
अपने घर में घुस गया ।
लोग बातें कर रहे थे,
"अरे जाने दो,
कभी-कभी ऐसा हो जाता है,"
"येन-केन-प्रकारेण प्रसिद्धो पुरुषो भवेत् ।"
अफ़सोस,
इस सब में उसे भूल गया था,
वह नायाब खयाल,
जिसे वह लिख लेना चाहता था ।
उसे सिर्फ़ इतना याद रह गया,
कि वह कैसे बिलकुल नग्न ही,
सड़क पर निकल आया था ।
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नंगी हकीकत.
ReplyDeleteराहुलजी,
ReplyDeleteआपकी एक आत्मीय टिप्पणी मेरे लिये किसी भी दूसरी
’फ़ॉर्मल’ टिप्पणी से बहुत अधिक महत्त्वपूर्ण है । क्योंकि,
मैं प्रथमतः सिर्फ़ अपने लिये लिखता हूँ । ’लिखने’ का
मेरा उद्देश्य होता है एक ’पेन्टिंग’ प्रस्तुत करना, एक
चित्र बनाना । चूँकि रंग-कूँची के प्रयोग से मैं अनभिज्ञ
हूँ, इसलिये अक्षरों शब्दों से किसी ’स्थिति’ का चित्र
रचने की क़ोशिश करता हूँ । और जैसे किसी चित्रकार के
चित्र की व्याख्या हर कोई अपने-अपने ढंग से करता है,
मैं सोचता हूँ कि मेरी ’कविता’ या गद्य पर भी लोग उनकी
अपनी रीति से प्रतिक्रिया करेंगे ।
सादर,
Wow...beautiful...really true... it happens
ReplyDeleteशुक्रिया प्रियाजी !
ReplyDeleteसचमुच मैं निराश हो गया था कि
मेरी रचनाओं को आप शायद नहीं
पसन्द करतीं । लेकिन इस टिप्पणी
से मेरी यह ग़लतफ़हमी दूर हो गई !
सादर,