~~~~~ बाज़ार में ...!! ~~~~~~
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© Vinay Vaidya -14032010.बाज़ार की ताकतें,
ढालती हैं,
अपनी-अपनी तराजुएँ,
आपके भयों, ज़रूरतों,
उम्मीदों, आशाओं,
को पलड़े बनाकर,
अपने भयों, सपनों को,
बटखरे बनाकर,
आप खुद ही कहीं ग्राहक होते हैं,
तो कहीं खरीदार भी,
और कुछ लोग बिचौलिये,
या दलाल भी,
जिनकी अपनी-अपनी तराजुएँ और
बटखरे होते हैं,
अपनी ’मैनेजमेन्ट-स्ट्रेटेजीज़’,
और ’टैक्टिक्स’, ’पॉलिसीज़’
और ’रिस्क-कैल्कुलेशन्ज़’ होते हैं,
’रिवलरीज़’ और ’कॉम्पिटिशन’ भी,
जो अर्थतन्त्र से लेकर युद्धतन्त्र तक
के दायरे में फ़ैले होते है,....
राजनीति के गलियारे,
बना देते हैं,
इस खेल को और भी रोचक, रोमांचक !
देखिये आप कहाँ हैं इस मैदान में !
मॉल्स से फ़ुटपाथ तक,
खेत-खलिहान से दलाल-स्ट्रीट तक,
क्लबों केसिनो से झोपड़-पट्टियों तक,
अनाथालयों से चिकित्सालयों तक,
चूल्हों चौकों से
क्रिकेट के चौकों छक्कों तक,
हर किसी के दिलो-दिमाग़ तक में,
कहाँ तक नहीं फ़ैले हैं,
ये गलियारे,
क्या इस महायन्त्र का कोई पुर्जा,
बदल सकता है,
यन्त्र की प्रणाली को ?
एक गहरा आपसी सामंजस्य है,
मशीन के सारे पुर्जों में,
और खेल जारी रहेगा,
जब तक आप चाहेंगे,
क्योंकि जैसे ही कोई पुर्जा टूट-फ़ूट जाता है,
बाज़ार की ताकतें,
उसे हटा देती हैं,
कतारबद्ध खड़े होते हैं,
नये पुर्जे,
खाली होती जगह को भरने की ललक में,
.... बाज़ार में,......!!
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