~~~ चाँद और ऊबे हुए लोग ! ~~~
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© Vinay Vaidya
’आदमी’ यहाँ आया उससे बहुत पहले से ही,
वह आसमान में रोज आता जाता था ।
उसका ’रोज’ सूरज से था,
क्योंकि सूरज का रोज पर एकाधिकार था ।
वह तो सूरज के आगे-पीछे या साथ-साथ,
अकसर ही रोज आता था, बिला नागा,
फ़िर भले ही इस आपाधापी में,
हर चार हफ़्तों बाद मरणासन्न अवस्था में,
लगभग मिटना ही क्यों न होता हो ।
लेकिन फ़िर दो हफ़्तों में पूरी तरह जवान हो जाता था ।
न जाने कितनी सदियों तक,
सूरज की सेवा में रहने के बाद,
जाकर कहीं उसे ’आदमी’ के दर्शन हुए थे ।
कुछ-कुछ,
’हज़ारों साल नरगिस अपनी बेनूरी पे रोती है,
कहीं जाकर तब होता है, चमन में दीदावर पैदा ।’
की तर्ज़ पर ।
और दीदावर तब से आज तक,
उसके सौन्दर्य से सम्मोहित होता रहा है ।
दीदावर ने अपनी महबूबा के चेहरे में उसे देखा,
और वे दोनों उसके घटने-बढ़ने, जवान होने,
और खो जाने पर फ़िदा होते रहे ।
ऐसे कितने ही माशूक और उनकी महबूबाएँ,
आए और चले गये ।
उन्होंने न जाने कितने महाकाव्य रच डाले,
धर्म, अध्यात्म, दर्शन, ज्योतिष, कला,
और प्रेम की शैलियों में ।
वह सब इतिहास है ।
उसके दीदार से उन्मत्त होनेवाली शै,
एक और भी तो थी !
हाँ सागर ।
लेकिन सागर ’आदमी’ से पहले आया था ।
और बहुत मुमकिन है,
कि आदमी के रुख़सत होने के बाद ही यहाँ से जाये ।
लेकिन पिछली दो सदियों में,
यह ’आदमी’ नाम का शख़्स,
कुछ ज़्यादा ही बदल गया ।
उसने उसकी हक़ीकत जाननी चाही,
तो वहाँ तक जानेवाली एक सीढ़ी ही बना डाली,
जो सीधे छलाँग लगाकर,
तीर सी उस तक पहुँचने लगी ।
लेकिन चाँद शरमाया नहीं !
वह वैसे ही रोज-बरोज आता-जाता रहा ।
अब ’आदमी’ के ऊबने का वक़्त है ।
चाँद से उसका ’हनीमून’ ख़त्म हो चला है ।
बहरहाल सागर अब भी हर्ष-विभोर होता है,
उसके जवान होते ही !
उनका रोमांस कभी ख़त्म न होगा ।
जारी रहेगा,
’आदमी’ के जाने के बाद भी ।
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जीवन का ज्वार-भाटा.
ReplyDeleteशुक्रिया,
ReplyDeleteराहुल सिंहजी,
सादर,
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Thanks and Best Regards.