"......यह जो,...."
~~20032010~~
© Vinay Vaidya
पेड़
यह जो हरा है !
देखकर आँखें शीतल हुईँ ,
और हृदय उमड़ा है !
आकाश
यह जो नीला है,
दूर तक फ़ैला है,
देखकर मन जुड़ा है,
पँख लगा उड़ा है !
धरती
यह जो श्यामल है,
कितनी सलोनी है,
देखकर याद आई,
माँ की गोद !
नेह
यह जो अरूप है,
जैसे छाँव-धूप है,
देखकर अदेखा सा,
मेरा महबूब है !
सूरज
यह जो नारंगी है,
सुबह और शाम को,
देखकर लगता है,
रोज खेलता है होली !
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पंचमेल सुंदर होली के रंग बिखरे हैं.
ReplyDeleteराहुलजी,
ReplyDeleteहोली की हार्दिक शुभकामनाएँ !!
सादर,