~~ अनजाने दोस्त / अतिथि-हवाएँ ~~
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11042011.
© Vinay Vaidya
कभी-कभी अनजान हवाएँ,
छूकर मुझे ग़ुजर जाती हैं,
मानों खेल रहीं हो मुझसे
आँख-मिचौली जैसा खेल ।
आती हैं किस ओर से वे,
और जाती हैं किस ओर,
नहीं देख पाता हूँ उनका,
मैं, यह या वह छोर !
केवल रह जाती हैं उनकी,
स्मृति में, कोई पहचान,
जिसे पकड़ नहीं सकता मैं,
रहती हैं वे अनजान !
साँसों में वे आकर लेकिन
रूह तलक भी जाती हैं,
कभी-कभी अनजान हवाएँ,
छूकर मुझे ग़ुजर जाती हैं ,...
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11042011.
© Vinay Vaidya
कभी-कभी अनजान हवाएँ,
छूकर मुझे ग़ुजर जाती हैं,
मानों खेल रहीं हो मुझसे
आँख-मिचौली जैसा खेल ।
आती हैं किस ओर से वे,
और जाती हैं किस ओर,
नहीं देख पाता हूँ उनका,
मैं, यह या वह छोर !
केवल रह जाती हैं उनकी,
स्मृति में, कोई पहचान,
जिसे पकड़ नहीं सकता मैं,
रहती हैं वे अनजान !
साँसों में वे आकर लेकिन
रूह तलक भी जाती हैं,
कभी-कभी अनजान हवाएँ,
छूकर मुझे ग़ुजर जाती हैं ,...
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हमेशा निभ जाने वाली दोस्ती.
ReplyDeleteधन्यवाद राहुलजी,
ReplyDeleteसचमुच, दोस्त कहाँ से आते हैं,
कहाँ जाते हैं,
अतिथि हवाओं की तरह !
बस उनकी कोई याद ही तो बनी रहती है,
एक पहचान,
-अमूर्त सी !
सादर,