April 25, 2011

~~हरेक सिम्त,...~~


© Vinay Vaidya 
25042011

~~हरेक सिम्त,...~~

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पहले कभी लिखा था, :


"हरेक सिम्त से देखता रहता हूँ तुझे,
ये बात और है कि जानता नहीं मैं  ।"


और आज लिख रहा हूँ, :


"हरेक सिम्त से तू देखता रहता है मुझे,
तेरी नज़रों से छुपकर बता कहाँ जाऊँ ?"


देर आयद, दुरुस्त आयद !!
ज़वाब आया तो सही !! 

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A comment added on 29-04-2011 :
बृजमोहनजी,
दर असल ये पंक्तियाँ ईश्वर को प्रियतम समझकर
लिखी गईं हैं, और यह वाकई दो-तरफ़ा है । पहले 
जब यह महसूस हुआ था कि अस्तित्व की हर वस्तु
एक ही अद्भुत्‌ ’प्रेरणा’ से संचालित है, तो ’उसे’ हर
वस्तु में अनायास ही देखने लगा । यह एक ’दर्शन’
था । बहुत समय बाद फ़िर ऐसा हो गया कि वह
’प्रेरणा’ मानों मेरा ध्यान अपनी ही ओर ले जा रही
हो । मतलब यह, कि ’वह’ भी मुझे देख रहा है, ....
टिप्पणी के लिये सादर धन्यवाद.
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2 comments:

  1. uf kitna antar ho gaya . Kya kahte the aur kya sun rahe hai

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  2. बृजमोहनजी,
    दर असल ये पंक्तियाँ ईश्वर को प्रियतम समझकर
    लिखी गईं हैं, और यह वाकई दो-तरफ़ा है । पहले
    जब यह महसूस हुआ था कि अस्तित्व की हर वस्तु
    एक ही अद्भुत्‌ ’प्रेरणा’ से संचालित है, तो ’उसे’ हर
    वस्तु में अनायास ही देखने लगा । यह एक ’दर्शन’
    था । बहुत समय बाद फ़िर ऐसा हो गया कि वह
    ’प्रेरणा’ मानों मेरा ध्यान अपनी ही ओर ले जा रही
    हो । मतलब यह, कि ’वह’ भी मुझे देख रहा है, ....
    टिप्पणी के लिये सादर धन्यवाद.

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