~~~~~~~~~~ बेवज़ह ~~~~~~~~~~
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अब वहाँ शब्द उभर आये हैं,
और तैर रहे हैं,
जहाँ पहले कभी,
मौन का गुँजार था ।
जहाँ पहले शून्य था,
अब वह हमारी मिलन-स्थली है,
जहाँ पहले शून्य का फ़ैलाव था,
अस्तित्व का यह आयाम,
जहाँ मेरे खयाल तुम्हारे खयालों को छूते हैं,
क्या ईश्वर को इस टुकड़े की सचमुच कोई ज़रूरत थी भी ?
नहीं, मेरे प्रिय !
बिलकुल नहीं थी,
उसी तरह,
जैसे, कि डामरीकृत सड़क पर,
घास,
चाँद को देखकर कुत्तों का भौंकना,
अँधेरे का डर,
विक्षिप्त की मूढ हँसी,
बिलकुल ही ग़ैर-ज़रूरी होते हैं !
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Words have emerged and float
where before the silence vibrated
Where was empty
now is the place
of our meeting,
radius of the real
where my thoughts
touch your thoughts
is this fragment needful for God?
No, my love, it is not,
as are not needed
the grass between the asphalt,
the bark of dogs at the moon,
the fear of the dark,
the foolish laugh of a madman.
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अनुवाद के बाद भी रचना की जीवन्तता बनी हुई है , बधाई
ReplyDeleteप्रिय सुनील कुमारजी,
ReplyDeleteब्लॉग पढ़ने और टिप्पणी लिखने के लिये धन्यवाद,
सादर,