Since Time Immemorial!
एक बात तय है!
वह यही कि यह कौतूहल, यह जिज्ञासा, यह खोज न तो "समय" में शुरू हुई और न "समय" में पूरी या समाप्त होने जा रही है। "समय" एक तो वह होता है जो हममें चलता है, और एक वह, जिसमें हम चलते हैं। इस सत्य / सच्चाई से अवगत होने पर भी अपनी लापरवाही से और अभ्यस्त हो जाने के कारण हम अपने जीवन को इन दो प्रकारों की तरह प्रतीत होनेवाले "समय" के बीच उसे कभी तो गतिशील और कभी स्थिर मान लेते हैं।
जैसे हम कहते हैं :
"Gone are the days..."
या -
"वे दिन भी आएँगे जब..."
हमारा मतलब सिर्फ इतना होता है कि
"वे दिन जा चुके, वह "समय" जा चुका, जब .."
या -
"वह "समय" भी आएगा, जब ..."
फिर "समय" का एक प्रकार वह भी होता है जिसे हम : "आजकल" या "फिलहाल" कहते हैं, और हमारा ध्यान कभी इस पर नहीं जाता कि इसके "अन्तराल" या "अवधि" को मापने का पैमाना क्या हो सकता है।
वेदान्त की शैली में इसे ही लक्ष्यार्थ और वाच्यार्थ के भेद के उदाहरण से समझा जा सकता है। फिर "समय" का एक और अद्भुत् उदाहरण उस प्रकार का "समय" होता है जिसमें हमें लगता है कि "समय" के साथ सब बीत जाता है। यह "समय" के प्रति हमारी संवेदनशीलता के अनुसार तय होता है। हमारी संवेदनशीलता के अनुसार कोई समय अंधकारपूर्ण होता है, जब हमें दिखलाई नहीं देता, और कोई समय ऐसा भी होता है जब हमें सब कुछ साफ साफ दिखलाई देता है। फिर एक समय ऐसा होता है जब हमें सब कुछ अस्पष्ट और धुँधला दिखलाई दिया करता है। जब न तो उजाला होता है, और न ही अंधेरा। उस "समय" हम किसी डर, आशंका, उम्मीद, रोमांच, असमंजस, उलझन, आशा, निराशा, इच्छा या हताशा से ग्रस्त होते हैं। स्तब्ध, जैसे एकाएक अप्रत्याशित रूप से कोई आकस्मिक खतरा हमारे सामने आ खड़ा होने पर। हम यह तक नहीं सोच पाते हैं कि अब क्या करना है, या क्या होने जा रहा है। वह समय पता नहीं कितना लंबा या छोटा होता है। यह तो निर्विवाद और असंदिग्ध सत्य है कि इन सभी विभिन्न प्रकार से प्रतीत होनेवाले अनेक या एक ही "समय" में हम (जो कुछ भी हम होते हों या हैं) वही अपरिवर्तनशील आधारभूत चेतना होते हैं जिसमें ये सभी विभिन्न प्रकार के अनुभव आते और जाते रहते हैं। इस संवेदनशीलता का, जो कि आधारभूत चेतना का ही दूसरा नाम है, और जिसमें "समय" नामक इस वस्तु (object) के अस्तित्व को अपने से पृथक्, स्वतंत्र और भिन्न की तरह ग्रहण कर लिया जाता है, के अभाव की कल्पना तक नहीं की जा सकती, क्योंकि ऐसा करने का प्रयास तर्क की कसौटी पर भी हास्यास्पद है।
और इसलिए एक ऐसा, वह "समय" भी है जिसे हम काल-निरपेक्ष / (Timeless) की तरह से जानते हैं।
विचार / वृत्ति का प्रारम्भ और अन्त है, जो यद्यपि अभी है किन्तु क्या निर्विचार / वृत्ति-शून्य चेतना का कोई प्रारम्भ या अन्त कभी हो सकता है!
यही है :
The Timeless Quest.
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