विकल्पवाद
सोचना / न-सोचना
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जब मैं बैंक में कार्य किया करता था, तब मेरे एक सहकर्मी थे, जिनसे मेरा जुड़ाव हो गया था। 'जुड़ाव' इसलिए, कि बाकी सारे लोगों से मेरा बस औपचारिक परिचय भर था। जबकि उनसे किसी हद तक सगे छोटे भाई जैसी आत्मीयता थी। वे उम्र में मुझसे पाँच वर्ष छोटे थे किन्तु 'अधिकार' में वे मुझसे बराबर ही थे। इसलिए कभी कभी अपनी हद से बाहर जाकर भी मुझे कुछ ऐसा कह देते थे, जो मुझे अच्छा तो नहीं लगता था पर जिसे मैं हँसकर टाल दिया करता था।
ऐसे ही एक दिन अचानक बोल पड़े :
"विनय! तुम सोचते क्यों नहीं!"
और फिर उन्हें अहसास हुआ मानों कि उन्होंने मुझ पर ऐसा कुछ अद्भुत् प्रहार किया है, जिसका कोई जवाब ही मेरे पास नहीं हो! जवाब, मैंने दिया भी नहीं।
उनका आशय यह था कि मुझमें सोचने की शक्ति का ही अभाव है। या शायद यह भी कि मैं अत्यन्त मूर्ख व्यक्ति हूँ।
उनकी इस बात का तत्काल कोई जवाब मुझे सूझा भी नहीं, तो वे विजयी भाव से मुस्कुरा रहे थे।
उस दिन चूँकि शनिवार था, बैंक का कार्य आधे समय तक ही हुआ और मैं और वह, हम दोनों साथ साथ बैंक से बाहर निकले।
पैदल घर तक लौटने में हमें करीब दस से पन्द्रह मिनट लगते थे।
"तुम क्या सोचते हो?"
मैंने उनसे पूछा।
उन्हें आभास हो चुका था कि मेरा यह प्रश्न दोपहर में उनके द्वारा पूछे गए सवाल के प्रत्युत्तर में पूछा गया था।
"मेरा काम तो सोच विचार किए बिना चल ही नहीं सकता है!"
उन्होंने सपाट उत्तर दिया।
"क्या तुम सोचते हो!?"
मैंने एक प्रश्न और दाग दिया।
वे सतर्क हो गए। प्रकटतः बोले -
"मतलब?"
"तुम सोचते हो, या तुम्हारा मस्तिष्क?"
"मैं और मेरा मस्तिष्क एक ही चीज है!"
"यह तुम सोच रहे हो, या मस्तिष्क? क्या कभी कभी ऐसा भी नहीं हुआ करता, जब न चाहते हुए भी कुछ वैसा सोचने के लिए मजबूर हो जाते हो, या बहुत जरूरी होने पर भी तुम्हारे लिए कुछ सोच पाना तक संभव नहीं हो पाता है?"
"मतलब?"
"मतलब यह कि दर-असल न तो तुम कुछ सोचते हो, और न कुछ सोच ही सकते हो। यह सिर्फ तुम्हारा कोरा भ्रम ही है कि तुम सोचते हो!"
"और अपने बारे में क्या कहोगे?"
"वह तो तुम पूछ ही चुके हो!"
"क्या?"
"विनय! तुम सोचते क्यों नहीं?"
वे कुछ नहीं बोले। बस हैरत से मुझे देखते रहे। कुछ देर चुप रहकर बोले -
"हाँ तुम ठीक ही कह रहे हो! सचमुच कोई भी दर-असल कुछ नहीं सोचता, और न ही सोच सकता है। हर किसी के मस्तिष्क में केवल, बस विचार या खयाल ही आया जाया करते हैं और उसे -
"मैं सोचता हूँ / मैं नहीं सोचता / मुझे नहीं सोचना है / मुझे सोचना चाहिए / मैं सोच रहा हूँ / मैं सोच रहा था ..."
यह गलतफहमी हो जाया करती है।"
उसके बाद कुछ नहीं है।
बाद में बहुत समय तक हम एक ही बैंक में कार्य करते रहे। हालाँकि हमारे कार्यस्थल अब अलग अलग और बहुत दूर दूर हो गए थे। फिर उसने शादी कर ली। उसकी पत्नी भी इसी बैंक में कार्य करती थी।
तब से अब तक हमारी कभी मुलाकात ही न हुई। शायद उसने, और मैंने भी मिलने की कोई कोशिश भी कभी नहीं की।
शायद यही वह वजह थी जिसके कारण हमारे बीच एक ऐसा "जुड़ाव" था जो कि कभी किसी दूसरे से न हो सका।
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