April 14, 2025

The System-Analyst.

The Anatomy, The Physiology and The Metabolism of an Organism / Organic System.

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यह पोस्ट इस ब्लॉग में लिखने का एक उद्देश्य यह भी है कि इसके पेज-व्यूज़ 199000 प्लस हो चुके हैं। जल्दी ही 200000 हो सकें।

अंग्रेजी या हिन्दी में ब्लॉगपोस्ट लिखने के अपने अपने फायदे और खामियाँ भी होती हैं, इसलिए दोनों का एक साथ प्रयोग करने से  optimization  का लाभ भी हो सकता है।

कोई व्यवस्था नॉमिनल, पर्सनल या मैटीरियल इन तीनों में से किसी एक प्रकार की हो सकती है। जैसे बही खाते लिखने के लिए खाते / account को इन तीनों में बाँट देने से मुद्रा / पैसे के एक से दूसरे में होनेवाले प्रवाह को सुनियोजित किया जा सकता है, वैसे ही व्यक्तिगत और सामूहिक संपत्ति (मुद्रा) के हस्तान्तरण को भी इस प्रकार से सुनियोजित किया जा सकता है।

किसी भी शुद्धतः भौतिक या यांत्रिक प्रणाली / व्यवस्था / System को संचालित करनेवाला उससे भिन्न ही कोई और ही होता है। दूसरी ओर, किसी जैव-प्रणाली / जैव- इकाई / organism के भीतर निहित सीमित जीवन ही उस जैव-इकाई को स्वयं ही किसी हद तक स्वतंत्र रूप से संचालित करता है, ऐसा प्रतीत होता है। जैसे अनेक छोटे-बड़े यंत्रों को सुनियोजित रीति से परस्पर संबद्ध कर एक यांत्रिक प्रणाली बनाई जाती है जिसे बनानेवाला उस प्रणाली से अलग होते हुए भी उसका संचालन करता है। किसी भी जैव-प्रणाली में उसको नियंत्रित और संचालित करनेवाला नियामक वस्तुतः उसके भीतर या बाहर होता है  कौन और कहाँ होता है इस बारे में शायद विज्ञान भी अभी ठीक ठीक कुछ नहीं कह सकता। और अगर कहें कि विज्ञान के नियम ही यह कार्य करते हैं तो यह भी तय है कि वैज्ञानिक प्रकृति के कार्यों का अवलोकन करने के  माध्यम से उन नियमों के बीच कोई सुसंगति खोजता है और उसे शाब्दिक रूप प्रदान करता है उसे 'नियम' कहा जाता है। ये नियम सार्वत्रिक और वैश्विक / universal and ubiquitous होते हैं, न कि किसी जैव-प्रणाली के अन्तर्गत सीमित, नियंत्रित और संचालित होते हैं।

इस प्रकार, ये नियम ही जैव-प्रणाली की दृष्टि से उसमें निहित और व्याप्त चेतना / consciousness होते हैं, जबकि ऐसी सभी जैव-प्रणालियों को उनमें स्थित भिन्न भिन्न प्रवृत्तियों के माध्यम से प्रेरित करनेवाला भी कोई नियम अवश्य और अपरिहार्यतः है जो उन सबमें भीतर और बाहर भी अस्तित्व में है। यह कहना अनुचित नहीं होगा कि

समष्टि और वैश्विक चेतना अर्थात्- Universal and collective consciousness.

ही वह एकमात्र नियम है जो चेतन / conscious  भी है, किन्तु यह नहीं कहा जा सकता है कि उसकी चेतनता / चेतना / consciousness  किसी एक जैव-प्रणाली या कुछ जैव-प्रणालियों तक ही सीमित है। वह चेतनता / चेतना अबाध और सर्वत्र व्याप्त है। चूँकि किसी एक या कुछ जैव-प्रणालियों के बनने और मिटने से उस चेतनता / चेतना की स्थिति और कार्य-क्षमता प्रभावित नहीं होती इसलिए उसे ईश्वर-चेतना या ईश्वरीय चेतना कहना गलत नहीं होगा। इस प्रकार हम ऐसे "ईश्वर" के अस्तित्व की कल्पना और अनुमान कर सकते हैं जो संपूर्ण अस्तित्व का संचालन तथा नियंत्रण भी करता है जो विभिन्न जड चेतन वस्तुओं को निर्वैयक्तिक या वैयक्तिक स्वरूप देता है और उसके ही द्वारा तय किए गए मानदण्डों के आधार पर किसी तय समय तक के लिए जीवन भी देता है। वह समय बीत जाने पर बाद में उसमें स्थित प्राण और चेतना विलीन हो जाते हैं, यद्यपि वे द्रव्य, जिनसे भौतिक शरीर और भौतिक संसार बनता है केवल रूपान्तरित भर होते हैं, नष्ट तो वे भी नहीं होते हैं। ऐसी ही किसी दूसरी, और  अन्य जैव-प्रणाली के बनने पर पुनः उसमें भी प्राण और चेतना का आविर्भाव होता है, लेकिन यह नहीं पता है कि क्या यह किसी जैव-प्रणाली के पुनर्जन्म हो सकता है या नहीं।

ऐसी ही असंख्य जैव-प्रणालियों के सामूहिक जीवन पर, और उनके बीच की आपसी क्रिया-प्रतिक्रिया पर ध्यान दें तो यह संपूर्ण संसार भी इसी तरह से, अपने-आपमें एक विराट और अत्यन्त जटिल किन्तु सुगठित / compact, connected, synchronized इकाई प्रतीत होगा, जिसका नियन्ता / ईश्वर भी सर्वत्र व्याप्त नियामक और एकमात्र समष्टिगत, सामूहिक और वैयक्तिक नियम भी स्वयं वही होगा।

श्री रमण महर्षि कृत 

உள்ளது நாற்பது  ग्रन्थ के रचयिता वासिष्ठ गणपति ने इसके संस्कृत काव्यानुवाद 

सद्दर्शनम् 

में इसी सत्य को इस प्रकार से श्लोकबद्ध किया है --

सर्वैर्निदानं जगतोऽहमश्च

वाच्यः प्रभुः कश्चिदपारशक्तिः।

चित्रेऽत्र लोक्यं च विलोकिता च

पटः प्रकाशोऽभवत्स एकः।। 

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