April 25, 2025

A K and A I

Question  प्रश्न 116

What Is Thinking?

"सोचना"  क्या है?

संचित ज्ञान और कृत्रिम ज्ञान

Acquired Knowledge  and:

Artificial Intelligence.

"सोचना" भाषा पर आधारित कार्य होता है।

मनुष्य के मस्तिष्क में सोचना "होता" है, जबकि मनुष्य से भिन्न प्रकार के किसी जीव का मस्तिष्क में "सोचना" होता है या नहीं, इस पर ध्यान दें तो समझा जा सकता है कि सोचना यद्यपि भाषा पर निर्भर एक कार्य या प्रक्रिया ही है किन्तु किसी न किसी "संचित ज्ञान" की संरचना और उस विशेष प्रणाली पर ही आश्रित हुआ करता है, जिसे कि "स्मृति" कहा जाता है।

उदाहरण के लिए किसी अत्यन्त सरल साधारण "घटना" की "स्मृति"। जैसे पेड़ से फल का टूटकर गिरना। वैसे तो पेड़ की शाखाएँ या पत्तियाँ आदि भी टूटकर गिरती रहती हैं, लेकिन पत्तियाँ हवा के जोर से इधर उधर बिखर भी सकती हैं, और उसे "गिरना" नहीं कहा जा सकता। वैसे ही किसी पक्षी का हवा में उड़ना भी ऐसी किसी घटना का एक उदाहरण हो सकता है। किसी "घटना" के होने का मुख्य तत्व है "कालक्रम" और उसके साथ बदलती हुई स्थितियाँ। स्थितियों के बदलते क्रम से "कालक्रम" का अनुमान किया जाता है या "कालक्रम" की गति और प्रकार के अनुसार किसी कार्य या प्रक्रिया के होने और बदलने का अनुमान किया जाना संभव होता है, यह तय नहीं है। वैसे दोनों सहवर्ती होते हैं यह तो स्पष्ट ही है। तो, मनुष्येतर प्राणी किसी भी छोटी से छोटी एक "घटना" या अपेक्षाकृत बड़ी अनेक "घटनाओं" के अनुभव को क्रमबद्घ कर किसी "घटना" की "स्मृति" और ऐसी ही अनेक स्मृतियों के क्रम की पहचान स्थापित कर उस आधार पर एक भाषा निर्मित कर सके / सकते होंगे यह कहा जा सकता है। और शायद आदिम मनुष्य भी ऐसी ही "भाषा" का प्रयोग करता रहा होगा। इसी प्रकार से भिन्न भिन्न "संकेतों" को "घटना-विशेष" की तरह से परिभाषित कर उनके सार्थक तात्पर्य को संयोजित किए जाने से कोई "भाषा" बनती होगी जिसे प्रारंभ में सभी प्राणी अनायास सीख और विकसित कर लेते हैं और फिर उसे विस्तार देकर / समृद्ध कर उस "भाषा" में "सोचने" का कार्य करने लगते हैं। क्या मानव निर्मित कंप्यूटर इसका ही प्रत्यक्ष उदाहरण नहीं है! क्या इसे भी गणना करने और सोचने के लिए किसी "भाषा" का ही सहारा नहीं लेना होता है? सिद्धान्ततः, क्या इस प्रकार की असंख्य "भाषाएँ" नहीं विकसित की जा सकती हैं? क्या इस प्रकार से "सोचना" वस्तुतः "संचित ज्ञान" पर आश्रित कार्य ही नहीं होता? इसलिए जब कोई (मनुष्य) "सोचता" है, अर्थात् जब उसके मस्तिष्क में कोई कार्य घटित होता है, तो क्या यह कार्य भी "संचित ज्ञान" पर आश्रित एक कार्य नहीं होता? क्या इस तरह के किसी कार्य का होना एक स्वचालित या प्राकृतिक प्रक्रिया ही नहीं होता? और क्या ऐसी किसी वस्तु के अस्तित्व का कोई प्रमाण हो सकता है जो इस प्रक्रिया को "घटित" करता हो? क्या किसी कंप्यूटर या सोचनेवाली मशीन, जैसे किसी रोबोट में भी ऐसा कोई "संचालनकर्ता" या monitor  होता है? तो क्या यह अनुमान किया जाना संभव है कि किसी भी प्राणी या मनुष्य में भी ऐसा कोई "संचालनकर्ता" होता होगा? और यदि ऐसा "कोई" होता भी हो तो क्या "जैव-प्रणाली" में ही वह एक उप उत्पाद (by-product) के रूप में घटित एक कल्पना ही नहीं होता होगा? 

इस "सोचने" से यह निष्कर्ष प्राप्त किया जा सकता है कि किसी भी जीव या मनुष्य में "सोचना" यद्यपि एक नितान्त स्वसंचालित प्राकृतिक कार्य ही होता है, किन्तु  जिसके एक "उप उत्पाद" / by-product के रूप में "स्वयं" को उस कार्य का करनेवाला मान लिया जाता है। क्या इस पूरी घटना को श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय तीन के निम्नलिखित श्लोक 

प्रकृतेः क्रियमाणानि गुणैः कर्माणि सर्वशः। 

अहंकारविमूढात्मा कर्ताहमिति मन्यते।।२७।।

के परिप्रेक्ष्य में देखने पर यही स्पष्ट नहीं हो जाता है, कि किसी भी कार्य का होना एक प्राकृतिक कार्य है जो कि प्रकृति के गुणों के माध्यम से -

through the attributes of nature

ही घटित होता है और उसे संचालित करनेवाला प्रकृति से पृथक् और भिन्न किसी और स्वतंत्र संचालनकर्ता के अस्तित्व की कल्पना एक असंगत और मिथ्या विचार ही है, न कि वास्तविकता।

प्रकृति के तीन गुणों - 

क्रमशः सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण हैं। और उनका ही अध्ययन भौतिक विज्ञान Physics  के अन्तर्गत  क्रमशः  potential, kinetic and inertia  या  light, energy and matter  इन तीन आधारभूत तत्वों के  रूप में और उस आधार पर किया जाता है। 

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