आज की कविता
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सच का सच /2
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चल अचल के साथ में,
अचल चंचल हो रहा,
चल बँधा यूँ स्नेह में
अब भला जाए कहाँ ?
नेह का बँधन अनोखा,
देह-मन की प्रीत सा,
एक चंचल एक चल,
जग की अनोखी रीत सा!
और यूँ जीवन हरेक,
पल-पल युगों से जी रहा,
अस्तित्व के इस नृत्य में,
जीव हर हर्षा रहा ।
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सच का सच /2
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चल अचल के साथ में,
अचल चंचल हो रहा,
चल बँधा यूँ स्नेह में
अब भला जाए कहाँ ?
नेह का बँधन अनोखा,
देह-मन की प्रीत सा,
एक चंचल एक चल,
जग की अनोखी रीत सा!
और यूँ जीवन हरेक,
पल-पल युगों से जी रहा,
अस्तित्व के इस नृत्य में,
जीव हर हर्षा रहा ।
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