आज की कविता
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यौवन-रथ कब रुका है,
लाँघकर समुद्र-पर्वत,
दिग्विजय करता रहा है,
दिग्-दिगंत तक!
उन्नत पथ लेकिन झुका है,
क़दमों तले उसके,
बिछ-बिछ गया है,
लाल कालीन सा!
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यौवन-रथ कब रुका है,
लाँघकर समुद्र-पर्वत,
दिग्विजय करता रहा है,
दिग्-दिगंत तक!
उन्नत पथ लेकिन झुका है,
क़दमों तले उसके,
बिछ-बिछ गया है,
लाल कालीन सा!
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