हिंदी -दिवस / भाषा-दिवस
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जैसे हर शहर का अपना एक चरित्र होता है और शहर एक जीवंत इकाई होता है, वैसे ही हर भाषा का एक चरित्र होता है, और हर भाषा अपने-आप में अनेक खूबियों से भरी होती हैं इसलिए भाषाओं का झगड़ा व्यर्थ की नासमझी है, अगर हम अधिक से अधिक, या कम से कम अपनी ही भाषा से ही प्रेम रखें, तो हमें दूसरी भाषाओं से वैर / भय रखने की क़तई ज़रूरत नहीं और इसीलिए सभी भाषाएँ साथ-साथ ही पनपती या नष्ट होती हैं, अलगाव में नहीं! हिन्दी-दिवस को इस भावना से मनाएँ तो शायद हम अधिक सुखी होंगे ।
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जैसे हर शहर का अपना एक चरित्र होता है और शहर एक जीवंत इकाई होता है, वैसे ही हर भाषा का एक चरित्र होता है, और हर भाषा अपने-आप में अनेक खूबियों से भरी होती हैं इसलिए भाषाओं का झगड़ा व्यर्थ की नासमझी है, अगर हम अधिक से अधिक, या कम से कम अपनी ही भाषा से ही प्रेम रखें, तो हमें दूसरी भाषाओं से वैर / भय रखने की क़तई ज़रूरत नहीं और इसीलिए सभी भाषाएँ साथ-साथ ही पनपती या नष्ट होती हैं, अलगाव में नहीं! हिन्दी-दिवस को इस भावना से मनाएँ तो शायद हम अधिक सुखी होंगे ।
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