आज की कविता
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बेटियाँ ...
बूटियाँ, छुई-मुई सी,
सुनते ही आहट स्पर्श की,
सकुचाकर सिमट जाती हैं,
छाया भी छूना मत उनकी,
अपरिचित, उन्मुक्त, चंचल,
बेटियाँ, छुई-मुई सी,
सुनते ही आहट स्पर्श की,
खिलखिला उठती हैं,
पल भर गले लगकर,
हो जाती हैं गद्-गद्,
पवित्र, नाज़ुक, चंचल,
कर देती हैं भावुक,
बूढ़े पिता को,.....
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बूटियाँ, छुई-मुई सी,
सुनते ही आहट स्पर्श की,
सकुचाकर सिमट जाती हैं,
छाया भी छूना मत उनकी,
अपरिचित, उन्मुक्त, चंचल,
बेटियाँ, छुई-मुई सी,
सुनते ही आहट स्पर्श की,
खिलखिला उठती हैं,
पल भर गले लगकर,
हो जाती हैं गद्-गद्,
पवित्र, नाज़ुक, चंचल,
कर देती हैं भावुक,
बूढ़े पिता को,.....
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