आज की कविता / क़ाश !
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कहीं कोई क़ाश इक ऐसी जगह हो,
बिल्लियाँ ही बिल्लियाँ हों हर तरफ़!
ऊँघती उठती ठिठकती सिमटती सी,
लेके अंगड़ाई गले से लिपटती सी,
देखकर चूहे को डर से काँपती सी,
भागकर तेज़ी से कुछ-कुछ हाँफ़ती सी,
स्याह कजरारी सुरमई चितकबरी,
लाल भूरी रेशमी सी मखमली सी,
हर तरफ़, हाँ हर तरफ़ बिखरी हुईं सी,
बिल्लियाँ ही बिल्लियाँ हों हर तरफ़!
खेलती चूज़ों से मुर्ग़े-मुर्ग़ियों से,
धूप में उस दौड़ती उन गिलहरियों से,
आपके सोफ़े पे बैठी हो सलीके से,
देखती हो आपको बस कनखियों से,
कहीं कोई क़ाश इक ऐसी जगह हो,
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कहीं कोई क़ाश इक ऐसी जगह हो,
बिल्लियाँ ही बिल्लियाँ हों हर तरफ़!
ऊँघती उठती ठिठकती सिमटती सी,
लेके अंगड़ाई गले से लिपटती सी,
देखकर चूहे को डर से काँपती सी,
भागकर तेज़ी से कुछ-कुछ हाँफ़ती सी,
स्याह कजरारी सुरमई चितकबरी,
लाल भूरी रेशमी सी मखमली सी,
हर तरफ़, हाँ हर तरफ़ बिखरी हुईं सी,
बिल्लियाँ ही बिल्लियाँ हों हर तरफ़!
खेलती चूज़ों से मुर्ग़े-मुर्ग़ियों से,
धूप में उस दौड़ती उन गिलहरियों से,
आपके सोफ़े पे बैठी हो सलीके से,
देखती हो आपको बस कनखियों से,
कहीं कोई क़ाश इक ऐसी जगह हो,
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