आज की संस्कृत रचना :
नाट्यशास्त्रम् / नाट्यशास्त्रसारम्
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नाट्यम् नटति कोऽपि कोऽपि नटराजो भवेत् ।
कोऽपि नटसूत्रधारको सञ्चालको सूत्रधारो ॥
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और हिन्दी में :
नटनागर नटखट बहुत, जैसे हों नटराज,
नटी भई मैं नट गयी बिसरे सगरे काज ।
नाट्यशास्त्रम् / नाट्यशास्त्रसारम्
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नाट्यम् नटति कोऽपि कोऽपि नटराजो भवेत् ।
कोऽपि नटसूत्रधारको सञ्चालको सूत्रधारो ॥
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और हिन्दी में :
नटनागर नटखट बहुत, जैसे हों नटराज,
नटी भई मैं नट गयी बिसरे सगरे काज ।
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कविता गूँगे का गुड, कविता पैरबिवाई
जो जाने समझा करै, देखे ना समझे कोई ।
--कविता गूँगे का गुड, कविता पैरबिवाई
जो जाने समझा करै, देखे ना समझे कोई ।
(गूँगे केरी सर्करा ...)
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