आज की कविता
हे शंकर त्रिपुरारी!
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तुम बिन मेरी कौन खबर ले हे शंकर त्रिपुरारी!
तात मात नहि तुम बिन कोऊ, भ्रात-भगिनी, नहि नारी,
नहि घर-बार नहीं धन-संपति, नहि कोऊ मीत हितैषी!
तीन ताप त्रिशूल भये हैं, हे त्रिनेत्र त्रिशूलधारी !
षड्-रिपु मोहे त्रस्त किए हैं, हे प्रिय-शैलदुलारी!
अब तो मुझ पर किरपा कीजे, गंगाधर डमरूधारी!
बिनती है चरनन में लीजे, मोहे हे मदनारी!
तुम बिन मेरी कौन खबर ले हे शंकर त्रिपुरारी!
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हे शंकर त्रिपुरारी!
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तुम बिन मेरी कौन खबर ले हे शंकर त्रिपुरारी!
तात मात नहि तुम बिन कोऊ, भ्रात-भगिनी, नहि नारी,
नहि घर-बार नहीं धन-संपति, नहि कोऊ मीत हितैषी!
तीन ताप त्रिशूल भये हैं, हे त्रिनेत्र त्रिशूलधारी !
षड्-रिपु मोहे त्रस्त किए हैं, हे प्रिय-शैलदुलारी!
अब तो मुझ पर किरपा कीजे, गंगाधर डमरूधारी!
बिनती है चरनन में लीजे, मोहे हे मदनारी!
तुम बिन मेरी कौन खबर ले हे शंकर त्रिपुरारी!
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