राजनीति के पुरस्कार बनाम पुरस्कार की राजनीति
प्रसंगवश
नमस्कार: पुरस्कार लौटाने वालों को समझें !! आजादी के बाद कम्युनिस्टों ने साहित्य ,प्रचार व इतिहास संस्थानों पर काँग्रेस की मदद से कब्जा किया l भारतीय इतिहास को पराजित मानसिकता का बनाया व प्राचीनता और गौरव को नकारा l साहित्य को भारत भक्ति से शून्य व सत्ता का गुलाम बनाया व विदेशी धन, प्रशंसा , तमगों की लालच में भारत को बदनाम करते रहे l इन्होने भारत की अस्मिता, गौरव की अनुभूति से जुड़े हर आंदोलन , साहित्य ,व्यक्ति ,संस्था ,प्रयास पर चोट की l
2014 के चुनाव में मोदी व भा.ज .पा को हराने की अपील की थी l
.........इन्हें अब लग गया कि अब ये हिंदू संस्कृति, संस्थाओं , विचारो को गाली नहीँ दे सकते , इनका षडयंत्र चल नहीँ सकता तो ये उन तमाम राष्ट्र विरोधी कार्यों , हिंसक कृत्यों , दंगो , हिंदू अपमान के मुद्दों पर चुप रहने वाले कायर लोग अब प्रचार पाने हेतु अवॉर्ड लौटा रहे हैं l अपने व अपनी विचारधारा के अस्तित्व के आखिरी पड़ाव में इनका असली रुप सामने आ ही गया l सारा देश जान रहा है publicity stunt के सहारे जीते आ रहे इन बेईमान लोगों का आखिरी publicity stunt . हम समझते रहें l....
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