आज की कविता
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वो एक अहसास!
देह थकती है ख़याल थकता है,
साँस थकती है दिमाग़ थकता है,
कभी कभी दोनों न थकें तो भी,
कोई होता है जो कि थकता है ।
यह थकान दिलो-ज़िस्म से परे,
यह थकान जो है दुनिया से जुदा,
कभी कभी गो महसूस हुआ करती है,
यह महसूसना कभी नहीं थकता ।
कभी तो हस्ती में इस थकान से मैं,
होता हूँ वाक़िफ़ कभी नहीं होता,
कभी तो होती है नुमाँ रुख-ब-रुख,
कभी कभी इसका ग़ुमां नहीं होता,
किसे हुआ है कभी और कभी किसे होगा,
जिसे भी होगा जहाँ से अलहदा होगा ।
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वो एक अहसास!
देह थकती है ख़याल थकता है,
साँस थकती है दिमाग़ थकता है,
कभी कभी दोनों न थकें तो भी,
कोई होता है जो कि थकता है ।
यह थकान दिलो-ज़िस्म से परे,
यह थकान जो है दुनिया से जुदा,
कभी कभी गो महसूस हुआ करती है,
यह महसूसना कभी नहीं थकता ।
कभी तो हस्ती में इस थकान से मैं,
होता हूँ वाक़िफ़ कभी नहीं होता,
कभी तो होती है नुमाँ रुख-ब-रुख,
कभी कभी इसका ग़ुमां नहीं होता,
किसे हुआ है कभी और कभी किसे होगा,
जिसे भी होगा जहाँ से अलहदा होगा ।
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