November 07, 2015

आज की कविता / 07/11/2015

आज की कविता / 07/11/2015
--
©


ध्वनि-ध्वज शिखा-पताकाएँ,

ध्वनि-ध्वज शिखा-पताकाएँ,
हर दिन कंपित प्रतिपल चञ्चल,
ऊष्मप्राण ऊर्जितगातमन,
ऊषारुणवेला में सूर्यस्नात,
लहराती रहती हैं साँझ तक,
मुक्तमनोत्स्फूर्तचित्त,
डोलता फिरता हुआ,
तितलियों की छ्ँह छूने,
फैलाकर दोनों हाथ,
और फिर थकित प्राण,
लेकर अपना मुख म्लान,
सो जाता उनींदा सा,
क्रोड में यामिनी के,
सो जाती शिखा-पताकाएँ,
समेटकर उत्सव-उल्लास,
ध्वनि-ध्वज शिखा-पताकाएँ,
--

No comments:

Post a Comment