November 10, 2015

आज की कविता : कितने सपने,

आज की कविता !
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उस दीपावलि,
इस दीपावलि,
हर दीपवलि,
कितने सपने,
कितने सुख-दुःख,
हमने जिए,
जलते रहे,
बुझते रहे,
पिघलते रहे,
बहते रहे,
साथ-साथ,
फिर भी तुम,
पूछती हो,
दिए लिये??
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