June 22, 2014

कल का सपना : ध्वंस का उल्लास - 6

कल का सपना : ध्वंस का उल्लास - 6
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आज आषाढ़ कृष्ण पक्ष की दसवीं तिथि है ।
आषाढ़ में वर्षा शुरू हो जाती है  ।
आषाढ़ आशा और आढ्यता का संगम है । जब ग्रीष्म अपने चरम पर होता है और काले कजरारे मेघा धरती का सर्वेक्षण करते हैं । मुझे नहीं पता, कि वे जानते हैं या नहीं कि उन्हें किस राह से बचना है और किस छत को भिगोना है!
मेरे  चर्यापथ पर लगे बिल्वमंगल / बनखोर के वृक्ष ध्वंस के उल्लास से गुज़रकर नए फलों से लद रहे हैं। हरे कच्चे फल जिनमें अभी बीज भी नहीं पड़े । वहीँ उनके साथ कुछ पुराने भी अपने दाँत दिखाते हुए पत्तों के बीच नज़र आ जाते हैं ।
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एक वृक्ष और है, मेरे घर के सामने के उपेक्षित से पार्क में । जिसमें शेविंग-ब्रश जैसे फूल आते हैं, गूगल-सर्च किया, लेकिन नहीं मिला उसका नाम । बचपन से उसकी भीनी भीनी महक अच्छी लगती थी । लेकिन अधिक देर तक साथ रहे तो सर दर्द होता है ।
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हम सुख को सहेजने लगते हैं और वह क्लेश हो जाता है ।
आशा और आढ्यता का संगम कभी कभी क्लेश भी बन जाता है ।
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बहरहाल, वर्षा की प्रतीक्षा है !
आओ देवि ! बरसाओ कृपा !
अभी तो सूरज बरसा रहा है,
ताप, उत्ताप, संताप, प्रताप, …
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ध्वंस का उल्लास जारी है, और मैं उल्लसित हूँ ।
जहाँ न सुख है, न दुःख, बस शांति है और उल्लास भी ।
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