कल का सपना : ध्वंस का उल्लास -7,
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ध्वंस के उत्सव में पिछला बहुत कुछ भस्म हो चुका है। लेकिन क्षति कोई नहीं हुई।
बल्कि विस्तार, विकास, समृद्धि, उन्नति और उत्कर्ष ही उत्कर्ष होता चला गया है।
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कल सोच रहा था एक ज्वलन्त मुद्दे पर लिखूँ, जिसमें मेरा राष्ट्र पिछले हज़ार वर्षों से जल रहा है। हाँ डर तो लगता है कि कहीं इसमें उंगलियाँ न जला बैठूँ !
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वर्ष 2004 में उज्जैन में सिंहस्थ के समय किताबों की जिस दुकान पर काम करता था वहाँ रखने / विक्रय के लिए कुछ पुस्तकें श्री रमणाश्रमम् तिरुवन्नामलाई मँगवाईं थीं। चूँकि 'सद्दर्शन' उनके पास उपलब्ध नहीं था (आउट ऑफ़ प्रिंट था) , तो मुझे मौका मिला कि इसी बहाने से इस पुस्तक के हिंदी अनुवाद को 'एडिट' कर प्रेस से नया संस्करण छपवा लिया जाए।
महर्षि की असीम कृपा से श्री रमणाश्रमम् तिरुवन्नामलाई के सर्वाधिकारी महोदय ने इसके लिए मुझे अनुमति प्रदान कर दी। (अभी भी मेरे पास इस संस्करण की दो सौ के क़रीब प्रतियाँ हैं।) चूँकि पुराना संस्करण तीस साल पहले छपा था, इसलिए उसमें वर्तनी की भूलें होना स्वाभाविक ही था। नए संस्करण को मेरे परिचित श्री रामकिशनजी तायल 'फ़ौजी' ने पूरे उत्साह और प्रसन्नता से उनकी प्रेस में कंप्यूटर-सेट और मुद्रित भी करवाया।
इसमें सबसे महत्वपूर्ण उल्लेखनीय बात यह थी कि यह अनुवाद हिमालय प्रदेश के ज्योतिर्मठ के श्री स्वामी स्वरूपानंद जी सरस्वती ने किया था। पहला संस्करण 1955 में प्रकाशित हुआ था।
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उक्त ग्रन्थ की 'भूमिका' यथावत् यहाँ उद्धृत कर रहा हूँ :
भूमिका
यह ग्रन्थ भगवान् रमण महर्षि ने तमिष् में लिखा था। इसका श्री वासिष्ठ गणपति मुनि ने संस्कृत में अनुवाद किया। अनुवाद का यह काम उन्होंने उस समय पूरा किया जब वे सिरसी, उत्तर कर्नाटक में तीव्र तपश्चर्या कर रहे थे।
श्री भारद्वाज कपाली श्री गणपति मुनि के प्रसिद्ध शिष्य थे। वे काफी समय तक अपने गुरु के साथ रहते थे। उन्होंने ही उसका संस्कृत भाष्य लिखा और अंग्रेजी अनुवाद भी किया। उन दोनों पुस्तकों को हमने प्रकाशित किया है।
हिमालय प्रदेश के ज्योतिर्मठ के श्री स्वामी स्वरूपानंद जी सरस्वती ने श्री कपाली शास्त्री के संस्कृत अनुवाद के आधार पर अपनी गंभीर प्रस्तावना सहित यह हिंदी भाष्य तैयार कर अनुग्रहीत किया है। हमारा दृढ विश्वास है की इस छोटी सी बहुमूल्य पुस्तक से हिन्दी भाषी साधकों को मार्गदर्शन के साथ साथ प्रेरणा भी प्राप्त होगी।
यथा-क्रम इस पुस्तक के प्रकाशन में श्री भगवान् व आश्रम के परम भक्त श्री हरिहर शर्मा ने पूरा सहयोग दिया है।
श्री रमणाश्रमम्
1-3-'55 प्रकाशक
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(क्रमशः ...... कल का सपना : ध्वंस का उल्लास - 8 )
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ध्वंस के उत्सव में पिछला बहुत कुछ भस्म हो चुका है। लेकिन क्षति कोई नहीं हुई।
बल्कि विस्तार, विकास, समृद्धि, उन्नति और उत्कर्ष ही उत्कर्ष होता चला गया है।
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कल सोच रहा था एक ज्वलन्त मुद्दे पर लिखूँ, जिसमें मेरा राष्ट्र पिछले हज़ार वर्षों से जल रहा है। हाँ डर तो लगता है कि कहीं इसमें उंगलियाँ न जला बैठूँ !
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वर्ष 2004 में उज्जैन में सिंहस्थ के समय किताबों की जिस दुकान पर काम करता था वहाँ रखने / विक्रय के लिए कुछ पुस्तकें श्री रमणाश्रमम् तिरुवन्नामलाई मँगवाईं थीं। चूँकि 'सद्दर्शन' उनके पास उपलब्ध नहीं था (आउट ऑफ़ प्रिंट था) , तो मुझे मौका मिला कि इसी बहाने से इस पुस्तक के हिंदी अनुवाद को 'एडिट' कर प्रेस से नया संस्करण छपवा लिया जाए।
महर्षि की असीम कृपा से श्री रमणाश्रमम् तिरुवन्नामलाई के सर्वाधिकारी महोदय ने इसके लिए मुझे अनुमति प्रदान कर दी। (अभी भी मेरे पास इस संस्करण की दो सौ के क़रीब प्रतियाँ हैं।) चूँकि पुराना संस्करण तीस साल पहले छपा था, इसलिए उसमें वर्तनी की भूलें होना स्वाभाविक ही था। नए संस्करण को मेरे परिचित श्री रामकिशनजी तायल 'फ़ौजी' ने पूरे उत्साह और प्रसन्नता से उनकी प्रेस में कंप्यूटर-सेट और मुद्रित भी करवाया।
इसमें सबसे महत्वपूर्ण उल्लेखनीय बात यह थी कि यह अनुवाद हिमालय प्रदेश के ज्योतिर्मठ के श्री स्वामी स्वरूपानंद जी सरस्वती ने किया था। पहला संस्करण 1955 में प्रकाशित हुआ था।
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उक्त ग्रन्थ की 'भूमिका' यथावत् यहाँ उद्धृत कर रहा हूँ :
भूमिका
यह ग्रन्थ भगवान् रमण महर्षि ने तमिष् में लिखा था। इसका श्री वासिष्ठ गणपति मुनि ने संस्कृत में अनुवाद किया। अनुवाद का यह काम उन्होंने उस समय पूरा किया जब वे सिरसी, उत्तर कर्नाटक में तीव्र तपश्चर्या कर रहे थे।
श्री भारद्वाज कपाली श्री गणपति मुनि के प्रसिद्ध शिष्य थे। वे काफी समय तक अपने गुरु के साथ रहते थे। उन्होंने ही उसका संस्कृत भाष्य लिखा और अंग्रेजी अनुवाद भी किया। उन दोनों पुस्तकों को हमने प्रकाशित किया है।
हिमालय प्रदेश के ज्योतिर्मठ के श्री स्वामी स्वरूपानंद जी सरस्वती ने श्री कपाली शास्त्री के संस्कृत अनुवाद के आधार पर अपनी गंभीर प्रस्तावना सहित यह हिंदी भाष्य तैयार कर अनुग्रहीत किया है। हमारा दृढ विश्वास है की इस छोटी सी बहुमूल्य पुस्तक से हिन्दी भाषी साधकों को मार्गदर्शन के साथ साथ प्रेरणा भी प्राप्त होगी।
यथा-क्रम इस पुस्तक के प्रकाशन में श्री भगवान् व आश्रम के परम भक्त श्री हरिहर शर्मा ने पूरा सहयोग दिया है।
श्री रमणाश्रमम्
1-3-'55 प्रकाशक
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(क्रमशः ...... कल का सपना : ध्वंस का उल्लास - 8 )
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