June 08, 2014

~~ कल का सपना - ध्वंस का उल्लास 5 ~~

~~ कल का सपना - ध्वंस का उल्लास 5 ~~
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पाँच वर्ष से अधिक हो गए 'नेट' पर !
इस बीच 'ध्वंस' और 'सृजन', 'सृजन' और 'ध्वंस' तथा 'ध्वंस के उल्लास' का नृत्य अविरल सतत निरंतर चलता  रहा। अनहद नाद सा।
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भारत राष्ट्र की 'सत्ता' के सूत्रधार बदल गए।  'ध्वंस', और 'सृजन', 'सृजन' और 'ध्वंस' तथा 'ध्वंस के उल्लास' का नृत्य अविरल सतत निरंतर चलता रहा। अनहद नाद सा।
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एक छोटी सी कविता कुछ दिनों पहले लिखी थी :
अपने लिए,
निराश हूँ,
लेकिन दुःखी नहीं।
तुम्हारे लिए,
दुःखी हूँ,
लेकिन निराश नहीं।
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बहुत-बहुत संतुष्ट हूँ अपने इस संक्षिप्त से, सारगर्भित वक्तव्य से।
वैसे तो यह किसी एक परिचित को लिखी गई 4 (या 6) पंक्तियाँ थीं, लेकिन इसे मैं मेरी सम्पूर्ण आत्मकथा ही समझता हूँ।  जिसे पूरे जगत के प्रति भी समर्पित करना चाहूंगा।
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सोचता हूँ वक्त कहकर नहीं आता।  ध्वंस और सृजन विपरीत या विरोधी नहीं एक-दूसरे के प्रतिपूरक हैं। दोनों वह बल-युग्म है, जो जीवन  है।  जन्म और मृत्यु भी ऐसा ही एक बल-युग्म है।
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बचपन से यह बल-युग्म मेरे जीवन के पहिए को संतुलित रखता चला आया है।  हर दिन, हर बार ऐसा लगता है कि अब यह पहिया इधर या उधर गिर जाएगा, लेकिन फिर फिर संतुलित हो  जाता रहा है । अध्यात्म, धर्म, शिक्षा, राजनीति, सामाजिक दबावों और व्यक्तिगत गुण-दोषों  बावज़ूद !
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हर रोज़, हर घड़ी कुछ न कुछ अनपेक्षित होता है, ख़ुशी या दुःख या बस रोज़मर्रा का रूटीन !
अख़बार पढ़ना मज़बूरी है, आज के अख़बार में ISIS के विरोध में कलकत्ता की मुस्लिम युवतियों के प्रदर्शन के फ़ोटो पर नज़र पड़ती है, दूसरी खबरें भी हैं, रुश्दी को मिला pen -pinter पुरस्कार या केदारनाथ सिंह को मिला ज्ञानपीठ, रेल-भाड़े में वृद्धि जिसे सदानंद गौड़ा पिछली u . p . a . सरकार की सौगात कहते हैं।
वास्तव में मेरा सोचना है कि हमें हर चीज़ की क़ीमत देनी ही होगी। तथाकथित विकास, समृद्धि, प्रगति, उन्नति, आदि की क़ीमत तो चुकानी ही होगी उससे कहीं बहुत अधिक क़ीमत  अपने लोभ, भयों जीवन-मूल्यों आदर्शों, विचारधाराओं, धर्म (?), परंपरा, सामाजिक सरोकारों की भी।
लेकिन शायद ही कोई क़ीमत चुकाने को तैयार है।
'ध्वंस' भी क़ीमत है, और मैं उल्लसित हूँ !

वे चार पंक्तियाँ फिर से उद्धृत कर रहा हूँ  :          

अपने लिए,
निराश हूँ,
लेकिन दुःखी नहीं।
तुम्हारे लिए,
दुःखी हूँ,
लेकिन निराश नहीं।
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और एक संशोधन  :

तुम्हारे लिए,
या अपने लिए,
भले ही मैं निराश या दुःखी होऊँ,
हैरत नहीं होगी मुझे,
अगर कल के अख़बार में,
तुम्हारे / मेरे / हमारे बारे में छपी,
कोई और डरावनी खबर,
मुझसे 'हॅलो' कहे !
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