October 28, 2024

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सन्दर्भ  : अश्विनी उपाध्याय

आज की कविता

समय मुट्ठी में बन्द रेत की तरह झर रहा है!

नियति का निष्ठुर चक्र निरन्तर चल रहा है,

चट्टान कण कण हो, रेत होती जा रही है,

रेत समय होकर, क्षण क्षण बिखर रहा है!

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