परसों 19 -05 -2019 की शाम,
लोकसभा में सांसद बनने की उम्मीदें रखनेवाले उम्मीदवारों का भाग्य,
मतपेटियों में बंद हो जाएगा।
लेकिन जिस गहमा-गहमी में लोकतंत्र का यह महापर्व मनाया जा रहा है,
उसे देखते हुए इंतज़ार बहुत लंबा महसूस हो रहा है।
पहले कभी,
"बादल कब आएँगे ?"
शीर्षक से एक कविता लिखी थी।
आज भी कुछ वैसा ही महसूस हो रहा है।
इसलिए इस कविता को यही शीर्षक दे रहा हूँ :
बादल कब आएँगे ?
--
यह चकाचौंध,
हाँ, दो दिन और रहेगी,
यह धमक-धौंस,
हाँ, दो दिन और रहेगी,
तीसरे दिन से मिलेगी राहत,
ये तपन और उमस
हाँ, दो दिन और रहेगी,
हाँ कि उम्दा है उम्मीदें रखना,
हाँ कि अच्छा है तपन-उमस सहना,
बारिशों का इन्तज़ार, -प्रतीक्षा,
हाँ, दो दिन और रहेगी !
हो मुबारक सैय्याद को उसका भरम,
पर न छोड़ो तुम अपना धरम,
इल्तिजा करो, इबादत होती रहे,
हाँ दो दिन और रहेगी !
--
लोकसभा में सांसद बनने की उम्मीदें रखनेवाले उम्मीदवारों का भाग्य,
मतपेटियों में बंद हो जाएगा।
लेकिन जिस गहमा-गहमी में लोकतंत्र का यह महापर्व मनाया जा रहा है,
उसे देखते हुए इंतज़ार बहुत लंबा महसूस हो रहा है।
पहले कभी,
"बादल कब आएँगे ?"
शीर्षक से एक कविता लिखी थी।
आज भी कुछ वैसा ही महसूस हो रहा है।
इसलिए इस कविता को यही शीर्षक दे रहा हूँ :
बादल कब आएँगे ?
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यह चकाचौंध,
हाँ, दो दिन और रहेगी,
यह धमक-धौंस,
हाँ, दो दिन और रहेगी,
तीसरे दिन से मिलेगी राहत,
ये तपन और उमस
हाँ, दो दिन और रहेगी,
हाँ कि उम्दा है उम्मीदें रखना,
हाँ कि अच्छा है तपन-उमस सहना,
बारिशों का इन्तज़ार, -प्रतीक्षा,
हाँ, दो दिन और रहेगी !
हो मुबारक सैय्याद को उसका भरम,
पर न छोड़ो तुम अपना धरम,
इल्तिजा करो, इबादत होती रहे,
हाँ दो दिन और रहेगी !
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