May 17, 2019

छूकर मेरे मन को ......

कुछ राजनीति हो जाए !
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पहले तो यह कहना चाहूँगा कि यहाँ 'राजनीति' से मेरा मतलब अवसरवादिता नहीं, बल्कि वह नीति है जो राजनेताओं के भाग्य को निर्देशित करती है। यह नीति व्यक्ति-व्यक्ति की स्थिति में सतत बदलती रहती है और शायद ही कोई राजनीतिज्ञ सावधानी से कभी इस पर ध्यान देता हो।
ज़ी-टीवी पर श्री राहुल गाँधी जी का छोटा सा इंटरव्यू देखा तो ख़याल आया कि ऋणात्मक ऊर्जा (negative energy) या विधेयात्मक ऊर्जा (positive energy) कैसे हर व्यक्ति पर जाने-अनजाने, चाहे-अनचाहे प्रभाव डालती है।
इस इंटरव्यू में इस बात पर मेरा ध्यान गया कि श्री राहुल गाँधी जी कैसे मोदी जी से बुरी तरह बाध्यता-ग्रस्त (obsessed) हैं, कैसे वे श्री मोदी से अपने दृष्टि हटा नहीं पाते, कैसे उनकी नज़र श्री मोदी जी पर 'फ़ोकस्ड' है ।  यदि ऐसा न होता, तो श्री मोदी जी का उल्लेख करने का विचार ही उनके मन में न आता।  अपने बारे में यह कहते हुए कि मैं अभी बहुत कम जानता हूँ, श्री नरेंद्र मोदी से अनायास स्वयं की तुलना करते हुए कह गए :
"जैसा वे (श्री मोदी जी) सोचते हैं कि वे सब-कुछ सीख चुके, अब उन्हें कुछ और सीखना बाकी नहीं है, -मैं वैसा नहीं सोचता, .... मैं धीरे-धीरे सीख रहा हूँ ।"
श्री राहुल गाँधी जी की विनम्रता प्रशंसनीय ज़रूर है लेकिन उनके इस वक्तव्य से यह भी ध्वनित होता है कि वे अपने राजनीतिक क्रियाकलाप मोदी जी से जोड़कर देखे बिना अपनी स्वतंत्रता से संचालित नहीं कर पाते।
कमोबेश यही स्थिति बहुत से दूसरे नेताओं की भी है। चाहे ममता बनर्जी हों, सीताराम येचुरी, अखिलेश या मुलायम सिंह यादव, मायावती आदि हों। लगता है मोदीजी ने उन सबको डरा रखा है, या वे सब उनसे डरे हुए हैं। 'डर' और 'आकर्षण' की स्थिति में यह कभी स्पष्ट नहीं हो पाता, कि आप स्वयं ही डरे हुए हैं या आपको किसी के द्वारा डराया गया है, -आप स्वयं ही आकर्षित हुए हैं या आपको किसी के द्वारा आकर्षित किया गया है । शायद इसे ही 'लव एंड हेट'-कॉम्प्लेक्स कहा जाता है। 'दरबारी' नेताओं को इस बारे में इतनी दुविधाओं का सामना नहीं करना पड़ता।  वे चाहे सत्तारूढ़ दल के हों, या विरोधी किसी दल के। वे तो अवसर देखकर पाला भी बदल लेते हैं। इस प्रकार लगभग हर नेता ऋणात्मक ऊर्जा (negative energy) से घिरा हुआ, आकर्षित और बाध्यता-ग्रस्त (obsessed) है, जबकि श्री मोदी जी किसी दूसरे नेता को अनावश्यक महत्त्व न देते हुए ही अपना एजेंडा स्वतंत्र रूप से तय करते हैं और इस प्रकार निरंतर विधेयात्मक ऊर्जा (positive energy) को आकर्षित करते हुए स्फूर्ति और उत्साहपूर्वक अपना कार्य करते रहते हैं। और इसका ही परिणाम है कि उनकी शक्ति लगातार बढ़ती जा रही है, जबकि उनके विरोधी अपनी ही ऋणात्मक ऊर्जा (negative energy) से घिरे हुए निरंतर कमज़ोर होते जा रहे हैं।  इसलिए महत्त्व राजनीतिक सफलता या विफलता का नहीं बल्कि इसका है कि आप  ऋणात्मक ऊर्जा (negative energy) से घिरे हुए हैं या विधेयात्मक ऊर्जा (positive energy) से। यह तो इतिहास ही तय करता है कि आपकी सफलता या विफलता कितनी क्षणभंगुर या स्थायी सिद्ध हुई !
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