गीत
'इबादत'
--
जिसे चाहो उससे कभी कुछ मत चाहो,
उसके अवगुण कभी न देखो, गुण सराहो,
तुमसे भले ही उतर आए दुश्मनी पर,
तुम उससे मुहब्बत का ही रिश्ता निबाहो,
हाँ ये मुश्किल है, बहुत ही है मुश्किल,
न आजमाओ उसे, खुद को आजमाओ !
बना लो अपने को तुम उसका बन्दा,
और उसे तुम खुदा अपना बना लो!
इक यही है सच्ची इबादत का तरीका,
अपनी रूह को तुम उसका मंदिर बना लो !
फिर हो वो बुत या चाहे हो बुतपरस्त,
या भले ही हो, काफ़िर या बुतशिकन,
बा-उसूल, बे-उसूल, या पाबंद मज़हब का,
खुद के मिटने का कोई तरीका निकालो !
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'इबादत'
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जिसे चाहो उससे कभी कुछ मत चाहो,
उसके अवगुण कभी न देखो, गुण सराहो,
तुमसे भले ही उतर आए दुश्मनी पर,
तुम उससे मुहब्बत का ही रिश्ता निबाहो,
हाँ ये मुश्किल है, बहुत ही है मुश्किल,
न आजमाओ उसे, खुद को आजमाओ !
बना लो अपने को तुम उसका बन्दा,
और उसे तुम खुदा अपना बना लो!
इक यही है सच्ची इबादत का तरीका,
अपनी रूह को तुम उसका मंदिर बना लो !
फिर हो वो बुत या चाहे हो बुतपरस्त,
या भले ही हो, काफ़िर या बुतशिकन,
बा-उसूल, बे-उसूल, या पाबंद मज़हब का,
खुद के मिटने का कोई तरीका निकालो !
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