August 18, 2018

आज की कविता / सहारे

आज की कविता / सहारे
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’कुछ भी ...’
सन्दर्भ बदलते ही ’तथ्य’ बदल जाते हैं,
और सब के अपने ’सत्य’ बदल जाते हैं,
कौन सा तथ्य होगा, कौन सा सत्य होगा,
इसे तय करने के पैमाने भी बदल जाते हैं ...
बदलती दुनिया में सब कुछ बदल जाता है,
संबंध बदल जाते हैं, उसूल बदल जाते हैं,
कौन सा सहारा मिले, किसे ढूँढते हैं हम,
जो सहारे होते हैं, वो सहारे बदल जाते हैं ...
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