आज की कविता : ख़बरनवीस!
--
ख़बरनवीस!
ख़बर नफ़ीस दो!
पढ़ते ही दौड़ने लगे,
लहू नसों में तेज़,
चलने लगें साँसे तेज़,
तड़प उठे दिल दर्द से,
किसी की ख़ातिर!
ख़बरनवीस!
ख़बर दो ऐसी,
कि ख़बर लो उन सबकी,
जो ढूँढते हैं,
ख़बरों में शिकारगाह,
जिनकी निगाहों में हैं,
हरे-भरे चरागाह,
जो ढूँढते हैं,
नसों में खुद के लिए,
ख़बरों में वहशी उन्माद,
उन सबकी ख़बर लो!
ख़बरनवीस!
ख़बर नफ़ीस दो!
--
--
ख़बरनवीस!
ख़बर नफ़ीस दो!
पढ़ते ही दौड़ने लगे,
लहू नसों में तेज़,
चलने लगें साँसे तेज़,
तड़प उठे दिल दर्द से,
किसी की ख़ातिर!
ख़बरनवीस!
ख़बर दो ऐसी,
कि ख़बर लो उन सबकी,
जो ढूँढते हैं,
ख़बरों में शिकारगाह,
जिनकी निगाहों में हैं,
हरे-भरे चरागाह,
जो ढूँढते हैं,
नसों में खुद के लिए,
ख़बरों में वहशी उन्माद,
उन सबकी ख़बर लो!
ख़बरनवीस!
ख़बर नफ़ीस दो!
--
(शायद इसे एडिटिंग की ज़रूरत है,
लेकिन ऐसी ज़ुर्रत करने का इरादा अभी नहीं है। )
No comments:
Post a Comment