June 08, 2015

आज की कविता /

आज की कविता
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तारों की रौशनी जहाँ है छाँव सी,
चाँद का आलोक स्वप्निल ज्योत्स्ना ।
रेत का विस्तार सागर सा अथाह दूर तक,
झील का लावण्य झिलमिल स्वप्न सा !
नींद किसको आ सकेगी इस जगह,
और कोई किस तरह सोया रहेगा?
स्वप्न का उल्लास सोने भी न देगा,
जागना भी कैसे संभव हो सकेगा?
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