आज की कविता / श्वेत श्याम
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उम्र के उस दौर में जब,
श्वेत श्याम केश हुए,
वक़्त के इस दौर में जब
श्वेत श्याम वेश हुए,
देश जब परदेश हुए,
विदेश जब स्वदेश हुए,
एक मुज़रिम की तरह,
हम यहाँ पर पेश हुए!
एक पेशा था तिज़ारत
इक तिज़ारत राजनीति
एक धंधा धरम भी था,
एक नीति थी अनीति,
शोहरत दौलत इबादत,
फ़र्ज़ ईमाँ लफ़्ज़ महज़,
सिर्फ़ लफ़्फ़ाज़ी ही मक़सद,
कामयाबी ही सबब,
और इस माहौल में
हम गए थे बस रच-बस,
ऐश में डूबे हुए हम,
फ़िक्र से बस लैस हुए,
श्वेत श्याम केश हुए,
श्वेत श्याम वेश हुए,
एक मुज़रिम की तरह,
हम यहाँ पर पेश हुए!
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उम्र के उस दौर में जब,
श्वेत श्याम केश हुए,
वक़्त के इस दौर में जब
श्वेत श्याम वेश हुए,
देश जब परदेश हुए,
विदेश जब स्वदेश हुए,
एक मुज़रिम की तरह,
हम यहाँ पर पेश हुए!
एक पेशा था तिज़ारत
इक तिज़ारत राजनीति
एक धंधा धरम भी था,
एक नीति थी अनीति,
शोहरत दौलत इबादत,
फ़र्ज़ ईमाँ लफ़्ज़ महज़,
सिर्फ़ लफ़्फ़ाज़ी ही मक़सद,
कामयाबी ही सबब,
और इस माहौल में
हम गए थे बस रच-बस,
ऐश में डूबे हुए हम,
फ़िक्र से बस लैस हुए,
श्वेत श्याम केश हुए,
श्वेत श्याम वेश हुए,
एक मुज़रिम की तरह,
हम यहाँ पर पेश हुए!
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