प्रार्थना !
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शिव तुम कितने भक्तपरायण,
उमा को तुमने हृदय लगाया,
गंगा और शशि को भी तुमने
हँसकर अपने शीश बिठाया,
सुर-असुरों मनुजों राक्षस पर
रहती सदा तुम्हारी करुणा,
कालकूट विष को भी तुमने,
इसी तरह से गले लगाया!
मुझ पर भी तुम कृपा करो ना,
प्रियतम करो न मेरी वञ्चना
मुझको नहीं लगाते पर क्यों,
हे शिव अपने पावन चरणा?
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शिव तुम कितने भक्तपरायण,
उमा को तुमने हृदय लगाया,
गंगा और शशि को भी तुमने
हँसकर अपने शीश बिठाया,
सुर-असुरों मनुजों राक्षस पर
रहती सदा तुम्हारी करुणा,
कालकूट विष को भी तुमने,
इसी तरह से गले लगाया!
मुझ पर भी तुम कृपा करो ना,
प्रियतम करो न मेरी वञ्चना
मुझको नहीं लगाते पर क्यों,
हे शिव अपने पावन चरणा?
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