December 26, 2014

हाथी से बड़ी पूँछ !

हाथी से बड़ी पूँछ !
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कुछ समय पहले एक छोटी सी कविता लिखी थी, :
तुम्हारे लिए,
मैं दुखी हूँ,
लेकिन  निराश नहीं !
अपने लिए,
मैं निराश हूँ,
लेकिन दुखी नहीं !!
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एक मित्र को 'टेक्स्ट' भेजा  तो उसने  पूछा :
'मतलब? ऐसा क्या हुआ?'

मैंने कहा,
'यह कविता मेरे और मेरी दुनिया के बारे में है |'
'मतलब?'
'जब किसी का कष्ट देखता हूँ, तो मुझे दुःख होता है, लेकिन जानता हूँ कि उसका कष्ट अवश्य दूर होगा, और चूँकि मुझे न किसी चीज़ की कामना है, और न आशा, इसलिए मैं दुखी भी नहीं हूँ और निराश भी हूँ |'
'हाथी से बड़ी पूँछ!'
उसने जवाब दिया |
'मतलब?'
'यही कि तुम्हारी कविता से बड़ी उसकी व्याख्या !'
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:)
  

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