~~~शिखर-पुरुष~~~
शिखर पर पहुँचकर,
आदमी अकेला हो जाता है,
और सबसे दूर भी ।
फ़िर भी न जाने क्यों लोग,
शिखर पर पहुँचने के ख़्वाब देखते हैं,
वे नहीं जानते कि वहाँ बहुत ठंड होगी,
ठंडी हवाएँ,
ऑक्सीजन और ’अपनों’ की कमी !
वहाँ तक पहुँचने से पहले ही,
एक संभावित ’नामालूम’ सी मौत,
जिसकी तस्दीक़ होगी शायद बरसों बाद,
जब एक ’डेड बॉडी’ बर्फ़ या हिमधारा में
बरामद होगी,
या फ़िर वह भी नहीं ।
मुझे तो लगता है कि कभी-कभी दुश्मन भी,
उकसा देते हैं,
पीठ थपथपाकर,
कोई पुराना हिसाब चुकता करने के लिये !
________________________
************************
कहा जाता है, चढ़ जा बेटा चोटी पर, भगवान तेरा भला करें.
ReplyDeleteजी राहुलजी,
ReplyDeleteइससे मिलती जुलती कहावत है, :
’चढ़ जा बेटा सूली पर’,
शुक्रिया,
सादर,