June 21, 2025

Thursday 19-06-2025

बारिशें / वारिशः 

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दो दिन बाद लिख रहा हूँ।  आज 21 जून 2025 है।

अंतरराष्ट्रीय योग-दिवस !

19 की सुबह शायद कोई ब्लॉग लिखा होगा।  07: 00 बजे प्रातःभ्रमण के लिए निकला। पुराने पुल पर दो तीन गायें बैठी थीं। मौसम आरामदेह था। छोटा सा वीडियो  बनाया जिसे बाद में डिलीट भी कर दिया। पुल से पार आसाराम आश्रम है। उससे पहले बाँई तरफ का रास्ता सूरजकुण्ड की ओर जाता है, दाईं ओर का रास्ता नये पुल की ओर। वहीं से लौट गया। पास की एक दुकान से 20-20 (twenty-twenty)  के पाँच रुपए वाले दो पैकेट खरीदे।  मन था कि पुल पर कौओं को खिला दूँ।  दोनों में छः छः बिस्किट थे। थोड़ा आगे चलकर एक पैकेट के, और फिर दस फुट की दूरी पर दूसरे पैकेट के बिस्कुट सड़क के किनारे रख दिए।  फिर वापस आ रहा था।  रास्ते पर तीन चार मिनट चला था कि एक कौआ रेलिंग पर बैठा दिखाई दिया। तभी दूसरी दिशा से उड़ता हुआ एक कौआ आकर मेरे सिर पर पल भर के लिए रुका और जैसे ही मैंने हाथ उठाया वह दूसरे कौए के पास जाकर रेलिंग पर बैठ गया तो मैंने उसे डाँटकर भगा दिया। मुझे उस पर गुस्सा नहीं आया था लेकिन खीझ जरूर हुई थी।

मोबाइल में समय देखा तो 07:31 बज रहे थे। सामने पुल के दूसरी तरफ जहाँ पश्चिम दिशा में शनि महाराज का मन्दिर है, उस तरफ ध्यान गया तक नहीं।

समय देखने का उद्देश्य तब यह था कि प्रश्न-कुण्डली बना कर उस पर सोचता, लेकिन फिर मन बदल गया। 

लौटकर घर आया, वॉश बेसिन में नल के नीचे सिर में साबुन लगा कर खूब अच्छी तरह सिर धोया लेकिन कौए के पंजों के क्षणिक स्पर्श की चुभन तब तक भी दूर न हो सकी।  अभी भी है! 

पिछले कितने ही वर्षों से मृत्यु के विषय में कुछ न कुछ सोचता रहा हूँ। वर्ष 2024 में चार परिचित और निकट के व्यक्ति दिवंगत हो चुके हैं। वैसे उनमें से किसी से भी संपर्क तक हुए अनेक वर्ष हो चुके हैं, लेकिन स्मृति अभी तक बाकी है।

जाने चले जाते हैं कहाँ! दुनिया से जानेवाले! 

क्या कौए का सिर पर बैठना कोई अपशकुन है? क्या यह मृत्यु के जल्दी आने का संकेत है?

(वैसे तो मैं किसी भी कौए को काक-भुशुंडि के ही रूप में देखता हूँ, इसलिए इस घटना को उनके आशीर्वाद की तरह भी मान सकता हूँ।) 

लेकिन मृत्यु की घटना (होने) का क्या अर्थ है। जिसे हम जीवित की तरह जानते हैं, उसकी मृत्यु हो जाने का पता चलने के पहले हम उसे कैसे जानते हैं? क्या हम उसके बारे में हमें प्राप्त जानकारी के आधार पर ही उसका कोई मानसिक चित्र ही नहीं बना लेते हैं, और यह नहीं सोचने लगते हैं कि वह इस इस प्रकार का है। यहाँ तक कि हम उसे उससे हमारे पारिवारिक संबंध के परिप्रेक्ष्य में भी जानने-पहचानने लगते हैं। हमें लगने लगता है कि हमें उससे बहुत प्रेम है और हम उसके न होने की कल्पना तक नहीं कर सकते। और अगर किसी व्यक्ति से हमारी शत्रुता हो जाती है तो हम न सिर्फ उसकी मृत्यु हो जाने की कल्पना बल्कि कभी कभी तो क्रोधवश ऐसी कामना भी करने लगते हैं। हमें कभी कभी इस पर ग्लानि और अपराध-बोध तक हो जाता है या हमें उससे किसी हद तक घृणा तक होने लगती है। और कभी संयोगवश हमें अगर उसकी मृत्यु होने की सूचना मिलती है, तो गहरा अफसोस और शर्म भी महसूस हो सकती है। कभी कभी तो बरसों तक भी हमारी यह भावना दिल से दूर नहीं हो पाती है। बरसों बाद हम उस व्यक्ति का नाम तक स्मरण नहीं कर पाते। शायद कोई घटना या स्थिति भर याद रह जाती है। तो मृत्यु क्या है। मेरे जितने निकट संबंधी और परिजन अब तक दिवंगत हो चुके हैं उनमें से एक दो को छोड़कर प्रायः सभी से (उनकी मृत्यु हो जाने के बाद) मैं अपने स्वप्न या स्वप्न जैसी किसी अर्धचेतन अवस्था में मिल चुका हूँ, और मुझे लगता है कि उनमें से कौन अब तक भी मृत्यु के बाद के किसी अन्य लोक में रह रहे हैं, और मैं इसे कल्पना या स्वप्न मानकर निरस्त नहीं कर सकता। पर वह कहानी फिर कभी।

शायद 19-06-2025 की ही सुबह मैंने किसी ब्लॉग में इस बारे में एक नई दृष्टि से गीता का यह श्लोक उद्धृत किया था -

अव्यक्तादीनि भूतानि मध्यव्यक्तानि भारत। 

अव्यक्तनिधनानन्येव तत्र का परिदेवना।।२८।।

(अध्याय २)

मुझे इसमें यत्किञ्चित भी संदेह नहीं है और मेरे मत में  यह तो तय और पूर्णतः सत्य ही है कि कोई भी मनुष्य मृत्यु होने पर पुराने शरीर को त्याग देता है, और उसके अनन्तर कुछ समय के लिए ऐसी ही अव्यक्त स्थिति में चला जाता है, और फिर अवश्य ही पुनः एक और नया शरीर धारण कर लेता है। जैसे हमें सुबह नींद से जाने पर नींद में देखे गए स्वप्न कुछ समय तक याद रहते हैं, और फिर हम उन्हें इस तरह भूल भी जाते हैं कि बहुत चेष्टा  करने पर भी हम उन्हें याद नहीं कर पाते, वैसा ही कुछ मृत्यु के बाद होता होगा। अगर हम किसी भी नवजात शिशु से उसके बारे में धीरे धीरे उससे पूछकर पता लगा सकें तो वह अवश्य ही उसके पिछले जन्म का नाम और दूसरी जानकारियाँ दे सकेगा। इसका इतना ही उपयोग है कि तब वैज्ञानिक रीति से हम समझ सकेंगे कि पुनर्जन्म की घटना कितनी सत्य है।

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