यूँ ही बस याद आया!
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जब मैंने पहली बार यह पढ़ा कि श्री जे. कृष्णमूर्ति कभी कभी इस pulp fiction novelist / पीत-पत्रकार लेेखक या उपन्यासकार जेम्स हेडली चेज़ को पढ़ते हैं तो मुझे थोड़ी हैरानी जरूर हुई थी।
फिर बहुत बाद में उनके ही द्वारा लिखी गई किसी रचना में यह पढ़ा कि कैैसे एक शिकारी पक्षी क्रूरता से उसके शिकार दूूसरे एक छोटे पक्षी के टुकड़े कर रहा था, तो मैं शायद इस रहस्य को समझ सका।
करीब दस वर्षों पहले एक तस्वीर वायरल हुई थी -
दस रुपए के नोट पर किसी ने लिखा था -
"सोनम बेवफ़ा है!"
वास्तव में उस समय यह कौतूहल और मनोरंजन का ही एक विषय था जिसे हल्के फुल्के ढंग से लिया गया था। ऐसी बहुत सी कथा-कहानियों को प्रायः इसी तरह और टाइम पास करने के लिए पढ़ा जाता है और कुछ समय बीतते ही भुला भी दिया जाता है, लेकिन जब ऐसा कुछ अपने स्वयं पर या अपने से जुड़े किसी पर बीतता है, तो वह बस स्तब्ध कर देता है।
वर्ष 2000 तक मैं जिस मकान में रहा करता था, उसके सामनेवाले रोड के उस तरफ का मकान बहुत सुन्दर था। दोपहर के समय वहाँ कोई नहीं होता था और उस समय गेट पर ताला लगा होता था। गर्मियों के मौसम की ऐसी ही एक दोपहर जब मैं बाहर से लौटा तो उस मकान में एक बाज दिखलाई दिया था, जिसने अपने पंजे में एक मासूूम, बेबस गौरैया को जकड़ रखा था। उसे देखते ही मुझे जे. कृष्णमूर्ति की लिखी वह रचना याद आ गई। मुझे देखते ही वह तुुरंंत ही वहाँ से उसे लिए हुए फुर्र हो गया।
बहुत देर तक इस घटना से मेरा मन स्तब्ध रहा।
यह इस पर भी निर्भर करता है कि हम किससे जुुड़े होते हैं, और किससे हमारी कितनी आत्मीयता होती है। हो सकता है हमारी आत्मीयता बाज से हो, या गौरैया से। और तब वह घटना भी हमारे लिए वैसी ही महत्वपूर्ण या महत्वहीन हो सकती है।
तब मुझे लगा कि श्री जे. कृष्णमूर्ति से तो अवश्य ही मेरी कुुछ आत्मीयता है।
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