January 19, 2025

Mohini.

FICTION

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नानी का घर

यह कथा कब शुरू हुई और कब समाप्त होगी कुछ नहीं कहा जा सकता है। इस कथा को समझने के लिए एक उदाहरण उपयोग में लाया जा सकता है। जैसे कि कोई वृत्तीय समतल (a flat circular disc) जो अपने केन्द्र पर घूम रहा है। जैसे कि एक स्थान पर स्थित कोई पहिया। जैसे यांत्रिक घड़ी (mechanical clock)  में अनेक छोटे-बड़े दाँतेदार गियरनुमा पहिए हुआ करते हैं, जो कि स्प्रिंग व्हील या बैलेंस व्हील से नियंत्रित होकर घड़ी के 'समय' को निर्धारित और परिभाषित करते हैं।  स्पष्ट है कि 'समय' का आभास भी, स्थान की ही तरह कल्पना पर आधारित एक धारणा / विचारमात्र होता है न कि आदि अन्त से रहित वास्तविकता। 

अपने केन्द्र के चारों ओर घूमते हुए इस वृत्तीय समतल  के अनेक बिन्दुओं में से प्रत्येक की अपनी कोणीय गति और रैखिक गति का अनुपात स्थिरांक (constant) नहीं होता है? केन्द्र से उसकी दूरी के अनुसार चूँकि एक ही समय अन्तराल में वह केन्द्र का एक परिभ्रमण पूर्ण कर लेता है, अतः उसकी रैखिक और कोणीय गति का अनुपात स्थिर होगा जिसे कि अतिपरवलीय समीकरण (hyperbolic equation) :

x.y = c.c

से व्यक्त किया जा सकता है, जहाँ  x और y रैखिक और कोणीय गति तथा c एक नियतांक (constant)  हैं।

यह उदाहरण द्वि आयामी तल पर गणितीय आकलन हुआ।  इसे ही त्रि आयामी तल पर प्रयुक्त करें तो इस आधार पर  ग्रहों और आकाशीय पिण्डों के बारे में भी कोई आकलन किया जा सकता है।

इस प्रकार समस्त स्थान बिन्दु में ही समाहित है और उस का ही विस्तार तथा संकुचन मात्र है।

रेवा तट पर घूमते हुए यही विषय चित्त में चल रहा था। यूँ कहें कि "मैं" ही वह चेतन बिन्दु है जो अत्यन्त सूक्ष्म होकर संकुचित और स्थूल होकर विस्तारित हो जाता है।

अपने इस चित्तरूपी बिन्दु के भीतर ही  काल और स्थान का आभास उत्पन्न होता है और एक संसार स्थूल शरीर के बाहर और एक स्थूल शरीर के भीतर विद्यमान है ऐसा प्रतीत होता है। क्या वस्तुतः ऐसे परस्पर भिन्न चित्त हैं या वे तात्कालिक और आभासी रूप से प्रतीत होते हैं?

कैवल्यपाद का :

निर्माणचित्तान्यस्मितामात्रात्।।४।। 

सूत्र यहाँ प्रासंगिक है।

योगदर्शन के इस पूरे चौथे अध्याय कैवल्यपाद में इसी विषय पर विवेचना की गई है।

अस्मिता क्या है?

साधनपाद में उल्लिखित सूत्र ५ के अनुसार -

अविद्यास्मितारागद्वेषाभिनिवेशाः पञ्च क्लेशाः।।

।।५।।

अस्मिता क्लेश है।

संक्षेप में, आभासी संसार में अस्मिता की मात्रा के साथ संलग्न चित्त असंख्य हैं।

दो तीन माह से सुविधा उपलब्ध न होने से, आलस्य या अन्य कुछ ज्ञात अज्ञात कारणों से सिर और दाढ़ी मूँछों के बाल अव्यवस्थित ढंग से बढ़ गए हैं।

नर्मदा तट पर मेरे जैसे अनेक ग्रामीण और पर्यटक आते जाते रहते हैं और प्रायः कोई किसी से इस बारे में कोई बातचीत नहीं करता।

दो दिन पहले यहाँ स्थित दुकानों में से एक पर गया तो दुकानदार से एक दो ग्राहक सामान ले रहे थे। ये सभी आसपास ऐसी ही छोटी बड़ी दुकानें चलाते हैं।

वे लोग मेरे बारे में बातें कर रहे थे, हालाँकि उन्हें मैं नहीं पहचाना। मेरा ध्यान सब्जी पर था। तब दुकानदार ने प्रश्न किया :

"कुम्भ स्नान में नहीं जा रहे हैं?"

मैंने कोई जवाब नहीं दिया। 

फिर उसने पूछा :

"जाना नहीं चाहिए?"

मैंने कहा :

"(चाहिए) यह शब्द मेरी किताब में नहीं है। जा सकता हूँ या शायद न भी जा पाऊँ! मैं इस बारे में कुछ नहीं सोच सकता। जो होता है वह होता है, जो नहीं होता वह नहीं होता। और फिर यहाँ माई (नर्मदा) है न! जैसी भी उसकी मरजी!"

सामान लेकर घर / आश्रम लौटा तो ध्यान आया -

कल ही माई से पूछा था तो बोली थी -

"चले जाओ बेटा!  हो आओ नानी के यहाँ कुछ दिन!"

"नानी?"

मैं सोच में पड़ गया। फिर समझ में आया गंगा को वह "नानी" कह रही थी। ठीक ही तो है! वह (नर्मदा माई)  शिवजी की बेटी है और मैं उसका बेटा! तो गंगाजी मेरी "नानी" ही तो हुई!

पर अब संकल्पपूर्वक कुछ कर पाना मेरे लिए असंभव सा हो गया है। एक समय था जब मैं संकल्पों को उठने से रोक नहीं पाता था। फिर लगातार ऐसा होता रहा और अब भी अकसर होता है कि मन में संकल्प आते ही और उसे पूरा करने के बारे में सोचते हुए ही कोई न कोई ऐसा विघ्न आ जाता है कि संकल्प करना तक व्यर्थ अनुभव होने लगता है, उसे पूरा करना तो और भी अधिक। 

फिर भी 'समय' निरन्तर अपनी रैखिक और कोणीय गति के साथ "बीत" रहा है।

घर / आश्रम पर आकर यू-ट्यूब पर कोई न्यूज़ चैनल देख रहा था तो वहाँ रिपोर्टर "हैप्पी हैप्पी" नाम की एक बन्जारन से बातें कर रहा था। उसकी भाभी भी वहाँ आ गई जिसका नाम "रूपरेखा" है। ये लोग महेश्वर नामक स्थान में और उसके आसपास रहते हैं और रुद्राक्ष तथा दूसरे रत्नों आदि की मालाएँ बेचने का व्यवसाय करते हैं। इसलिए कुंभ मेले में उनका जाना स्वाभाविक ही है। और फिर इन बन्जारों और उनके समुदाय के लोगों की बातें होने लगीं। उनके नैन नक्श और सौन्दर्य की भी। पता चला कि बहुत से मनचले और फिल्मी हस्तियाँ भी इन पर मुग्ध हैं। फिर सलमान खान का भी जिक्र हुआ। 

याद आया कि राजस्थान में कहीं कृष्णमृग का शिकार करने का आरोप भी सलमान खान पर लगा और शायद इसलिए भी बिश्नोई समुदाय के कुछ लोग उसके शत्रु हो गए। ये बन्जारिनें भी मृगनयना हैं और विष्णु का मोहिनी रूप भी शायद यही हैं।

एक ओर तो एक वह बन्जारिन थी जो भगवान् राम की प्रतीक्षा में जैसे तैसे जीवन बिता रही थी और फिर उन्हें  जूठे बेर खिलाकर धन्य हो गई, तो दूसरी ओर ये भी हैं - बन्जारिनें, कृष्णमृग और शबरी!

दैवी ह्येषा गुणमयी मम माया दुरत्यया।

मामेव ये प्रपद्यन्ते मायामेतां तरन्ति ते!! 

*** 







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